Book Title: Niti Tattvadarsh Yane Vividh Shloak Sangraha Author(s): Ravichandra Maharaj Publisher: Ravji Khetsi View full book textPage 9
________________ आथी आपणने ए मार्गनी संपूर्ण सांगोपांग मायिती छे अने आपणाथी ते प्रमाणे वर्तवानुं बनी शकतुं नथी एम नथी, परंतु आपणे नीतिनी केटलीक बाबतोथीन अज्ञात छीए. आवी अज्ञानताने लीधे आपणुं जीवन केटलुं बधू भयंकर बनतुं जाय छे- ए आपणा ख्यालमां नथी. - आपणे सारी रीते जाणीए छीए के भीत विना चित्र न नीकळे, वस्त्रमाथी मेल दूर कर्या विना तेनापर रंग न चडी शके, खेतरने बराबर खेड्या विना तेमां वावणी करवामां आवे तो बहुधा ते परिश्रम निष्फळ थाय छे, तेम नीतिमार्गना अस्तित्व विना धर्माराधननी सफळता संभवती नथी. आ आपणी अक्षम्य अज्ञानता निरस्त थाय अने शनैः शनैः नीतिनुं साम्राज्य स्थापन थाय एवा हेतुथी अने तेना परिणामे धर्मभावनानी दिव्य प्रभा विश्वव्यापी थइ अनेक भव्य जनोनो उद्धार थाय-एवा हेतुथी आ पुस्तक प्रगट करवामां आवेल छे. जेमा मूळ संस्कृत श्लोको के जे प्राचीन महर्षिओना बनावेल अनेक ग्रंथोमांथी संगृहीत करवामां आवेल छे. आज काल आपणामां संस्कृत विद्यानो ओछो प्रचार होवाथी मात्र मूल श्लोको राखवा जता-तेनो भावार्थ गुरुगम विना समजवो मुश्केल थइ पडे-ए मुश्केलीओ दूर करवा मूल श्लोको साथे भावार्थ पण छपाववामां आवेल छे. जेथी वाचकोने श्लोको समजवामां अधिक सुगमता थइ पडशे. . छतां ग्रंथ गौरवनाPage Navigation
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