Book Title: Niti Tattvadarsh Yane Vividh Shloak Sangraha
Author(s): Ravichandra Maharaj
Publisher: Ravji Khetsi

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Page 13
________________ ( २ ) अशिक्षिता अपि नृणां प्रादुःष्यति कुबुद्धयः । सुशिक्षिता अपि नृणां प्रच्यवते शुभाः क्रियाः । २ ॥ भावार्थ - अहो ! मनुष्योने कुबुद्धि शिक्षण विना पण उत्पन्न थाय छे अने शुभ संस्कारो ( क्रियाओ ) शीखव्या छतां नष्ट थइ जाय छे. २ अनंता गृहचिंतेयं तोयराशिसमा नृप । यदेकया स्त्रिया नष्टा गाथापंचशती मम ॥३॥ भावार्थ - हे राजन् ! आ गृहचिंता - समुद्रनी जेम अनंत छे; कारणके एक स्त्रीना योगे मारी दररोजनी पांच पांच सो गाथाओ नष्ट थई. ३ अनभ्यासात्कलीनाशे यद्योषिद्दोषपोषणम् । तत्कोलखादिते क्षेत्रे महिषीसुतकुट्टनम् ॥ ४ ॥ भावार्थ - अभ्यास न करवाथी कळानो नाश थाय अने तेथी स्त्रीने दोष देवो-ते डुक्करथी खवायेला क्षेमां पाडाने मार मारवा बरोबर छे. ४ अगम्यां भूरिमायानां व्यक्तमुक्ताफलागमाम् । साधुशालां पुनर्द्वरे जहुः सिंहगुहामिव ॥ ५ ॥

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