Book Title: Niti Tattvadarsh Yane Vividh Shloak Sangraha Author(s): Ravichandra Maharaj Publisher: Ravji Khetsi View full book textPage 8
________________ बोल... गच्छतः स्खलनं क्वापि भवत्येव प्रमादतः । हसंति दुर्जनास्तत्र समादधति सज्जनाः ॥ ' रस्ते चालतां प्रमादना योगे वखतपर क्यां स्खलना थइन जाय छे. परंतु दुर्नम जनो पोताना स्वभाव प्रमाणे ते प्रसंगे हास्यादिक चेष्ठा करे छे अने सज्जन जनो पोताना स्वभाव प्रमाणे कइंक युक्तिथी समाधान करे छे. C नीति - ए धर्मनो पायो छे' आ पुराणी कहेवत अक्षरशः सत्य छे. जेटले अंशे नीतिरूप पायो मजबूत हशे, तेटले अंशे धर्मरूप इमारत मजबूताईमां रही शकशे. आज काल नीतिमार्गंनी दरकार कर्या विना आपणे धर्म साचववानी उमेदवारी करवा आगल पडता भाग लेवा जइए छीए. आथी एम कहेवानी जरूर नथी के तेम न करवुं. परंतु निर्बळ पायांनी इमारतनी जेम तेवा विचारो अंतरमां एकीभाव पामवाना नथी. धर्मभावना के धर्मवासना एवी होवी जोइए के गमे तेवा अणीना प्रसंगे पण तेनो लेशमात्र लोप न याय. हाल आपणा अंतरमां धार्मिक विचारोए जे अस्थिरतामु रूप धारण कर्यु छे, तेनुं मुख्य कारण मात्र नीतिनी निर्मळता छे.Page Navigation
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