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(१४) वह खाना चाहिये जो धर्म से मिला है वह । अक्रलमन्द है जो पाप नहि करता । वह दोसती है जो पीठ पीछे रहती है। वह धर्म है जो विना फरेव के किया जाता है।
That should be eaten which is got onestly. He is wise who does no sin. That is friends which lasts in absence. That is religion .which is p actised without a
fraud.
स्वकार्ये शिथिलो यः स्यात् किमन्ये न भवन्ति हि। जागरूकः स्वकार्ये यस्तत् सहायाश्च तत् समाः ॥ - जो अपने काम में ढीला है तो दूसरे क्यों न हों जो अपने काम में जागता है उसके सहायक वैसे हि हो जाते हैं।
When one is slack in his work, how can others bo otherwise ? He who is awake in his business, has helpers pike him. यो जानात्सर्जितुं सम्यगर्जितं न हि रक्षितुम् । नातः परतरो मूो बथा तस्यार्जनश्रमः॥
जो पैदा करना अछी तरह जानता है पर उसकी रक्षा करना नहि जानता इससे वडा मूर्ख कोई नहि उलके पैदा करने की मिहनत वेफायदा है
There is no greater fool than le who knows well how to earn, but not how to protect what is earned. His exertion in earning is vain. पराधीनं नैव कुर्यात् तरुणीधनपुस्तकम् । कृतं चेल् लभ्यते दैवाद् भ्रष्टं नष्टं विमर्दितम् ॥
जवान स्त्री दौलत और पुस्तक दूसरे के आधीन न करै करने पर परि भाग्य से फिर मिल जाय तो खराव टूटी पिगडी हुई मिलती है
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