Book Title: Niryukti Panchak Part 3 Author(s): Bhadrabahuswami, Kusumpragya Shramani Publisher: Jain Vishva Bharati View full book textPage 8
________________ आशीर्वचन आगम के व्याख्या साहित्य में नियुक्ति का स्थान प्रथम है। इसकी रचना गागर में सागर भरने जैसी है। भाष्यकारों और टीकाकारों के सामने नियुक्ति व्याख्या का आधार रही है । हमारे धर्मसंघ में आगम-संपादन के साथ-साथ नियुक्ति के संपादन का कार्य भी लम्बे समय से चल रहा है। संपादन के इस कार्य में समणी कुसुमप्रज्ञा संलग्न है। मुनि दुलहराजजी का अत्यंत महत्त्वपूर्ण योग इस संपादन में है । निर्युक्तियों की गाथाओं का अनुवाद मुनि दुलहराजजी ने किया है I निर्युक्ति का संपादन अनेक दृष्टियों से श्रमसाध्य और दुर्गम है। जो कार्य हुआ है उसमें और भी परिष्कार की अपेक्षा है, इसे विनम्रतापूर्वक स्वीकार करना चाहिए । फिर भी जो काम हुआ है, वह बहुत मूल्यवान् और श्रम की बूंदों से अभिषिक्त कार्य है । जो कार्य स्वयं मूल्यवान् है, उसके मूल्यांकन की अपेक्षा नहीं की जा सकती नहीं की जानी चाहिए। फिर भी इस कार्य का अंकन होगा, यह विश्वास के साथ कहा जा सकता है । अध्यात्म साधना केन्द्र, महरौली ६.५.९९ Jain Education International For Private & Personal Use Only आचार्य महाप्रज्ञ www.jainelibrary.orgPage Navigation
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