Book Title: Nihnav Rohgupta Guptacharya ane Trairashik Mat Author(s): Trailokyamandanvijay Publisher: ZZ_Anusandhan View full book textPage 4
________________ फेब्रुआरी - २०१२ १४९ महागिरिजीनो स्वर्गवास वीर नि.सं. २४५ मां थयो छे. माटे निह्नव रोहगुप्त जो तेओना ज शिष्य होय तो तेमनो सत्तासमय वीरनिर्वाणनो त्रीजो सैको थाय. ज्यारे रोहगुप्तना निह्नव बनवानी घटना वीर नि.सं. ५४४मां बनी छे. २ तो ५४४ मां अस्तित्व धरावनार रोहगुप्त त्रीजा सैकाना महागिरिजीना शिष्य कई ते होई शके ? माटे रोहगुप्तना महागिरिजीना शिष्य होवाना स्थविरावलीगत प्रतिपादन परत्वे त्रण विकल्प सम्भवे छे : १. रोहगुप्त वीर नि.सं. ५४४मां नहीं, पण त्रीजा सैकामां ज थया होय. आमे पांचमा निह्नव गाङ्गेय वीर नि.सं. २२८मां थया छे. माटे रोहगुप्त त्यार पछी गमे त्यारे थया होय तो पण तेमनो क्रमाङ्क छठ्ठो ज रहे छे. पण आम बनवुं ओटले सम्भवित नथी के वीर नि.सं. २१५ थी २४५ महागिरिजी, २४६ थी २९१ सुहस्तिसूरिजी अने त्यारबाद सुस्थित- सुप्रतिबुद्ध संघनायक हता. तेथी तेमना समयमां जो आवी मोटी घटना बनवा पामी होत, तो संघनायक तरीके के अंक शास्त्रज्ञ श्रद्धेय पुरुष तरीके तेमने तेमां जोडावानुं अवश्य थयुं होत. पण आपणे जोइसे छीओ के रोहगुप्तना निह्नव बनवानी आखी घटनामां क्यांय तेमांथी कोईनुं नाम नथी. बल्के श्रीगुप्ताचार्य पोते ज रोहगुप्तने निह्नव तरीके जाहेर करे छे. ते दर्शावे छे के त्यारे श्रीसंघमां तेओनुं स्थान घणुं ऊंचं हशे के जे वीर - निर्वाणना त्रीजा सैकामां सम्भवित नथी बनतुं. वळी, ज्यां ज्यां आ घटनानो समय दर्शावायो छे ते बधे ज ठेकाणे वीर नि.सं. ५४४नो ज उल्लेख छे ते पण भूलवुं न जोइओ. २. आ विसंगतिना निराकरणमां त्रिपुटी महाराजे जैन परम्परानो इतिहास - १, पृ. १४५ पर अवुं सूचव्युं छे के स्थविरावलीमां महागिरिजीना जे आठ शिष्योनां नाम अपायां छे तेओने साक्षात् महागिरिजीना शिष्यो न समजतां महागिरिशाखाना क्रमशः पट्टधर समजवा जोइओ. तेथी रोहगुप्तनुं नाम आठमा १. “थूलभद्दे पणयालेवं दुपन्नरस । अज्जमहागिरि तीसं" - युगप्रधानपट्टावली. स्थूलभद्रजी २१५मां स्वर्गवासी थया छे. अने त्यारबाद महागिरिजी ३० वर्ष युगप्रधानपदे रह्या छे ओवो आ पाठनो भाव छे. "पंचसया चोयाला तइया सिद्धिं गयस्स वीरस्स । पुरिमंतरंजियाए तेरासियदिट्ठी उप्पन्ना ।” – वि. भाष्य २४५१Page Navigation
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