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अनुसन्धान-५८
छे. जेम के आ गणना प्रमाणे आर्यरक्षितनी दीक्षा वीर नि.सं. ५३१मां नहीं, पण ५४४मां थई गणाय. बीजी बाजु भद्रगुप्तसूरिजीनुं स्वर्गगमन ५३३मां थयुं छे, ओम आ गणना कहे छे. हवे अ तो प्रसिद्ध ज छे के भद्रगुप्तसूरिजीने अन्तसमये निर्यामणा करावनार आर्यरक्षित हता. १ पण उपरनी गणना प्रमाणे तो आर्यरक्षितनी दीक्षा ज भद्रगुप्तसूरिजीना स्वर्गवासथी ११ वर्ष पछी थाय छे, माटे भद्रगुप्तसूरिजीना अन्तिम दिवसोमां तेमनी हाजरी ज शक्य नथी बनती !
उपरान्त, गोष्ठामाहिल आर्यरक्षितजीना स्वर्गगमनना वर्षे ज निह्नव तरीके जाहेर थया छे अने आ घटना वीर नि.सं. ५८४ना वर्षे बनी छे. पण वालभीगणना प्रमाणे तो ५८४मां वज्रस्वामी कालधर्म पामे छे अने आर्यरक्षित युगप्रधान बने छे अने ५९७मां तेमनुं स्वर्गगमन थाय छे. आ संजोगोमां ५८४मां गोष्ठामाहिलना निह्नव बनवानी घटना वर्णवतां तमाम शास्त्रो करतां आ गणना विरुद्ध बने छे. आ अने आवी बीजी विसंगतिओ दर्शावे छे तेम वालभी युगप्रधान - पट्टावली क्षतियुक्त छे. छतांय माथुरी गणनामां नहीं देखातां केटलांय श्रुतधर भगवन्तोनां नाम अने हकीकतो आ गणनामां मळे छे से रीते आ गणना पण उपकारक छे.
प्रस्तुत समग्र चर्चानो निष्कर्ष से छे के (१) निह्नव रोहगुप्त महागिरिजीना शिष्य स्थविर रोहगुप्तथी जुदी अने लगभग ३०० वर्ष पछी थयेली व्यक्ति छे. (२) आ रोहगुप्त श्रीगुप्ताचार्यना विद्याशिष्य छे. कदाच श्रीगुप्ताचार्य तेमना दीक्षागुरु पण होई शके. (३) श्रीगुप्ताचार्य दशपूर्वधर भगवन्त छे अने वज्रस्वामीना समकालीन वाचनाचार्य छे. (४) तेमनो वाचनाचार्यपर्याय वीर नि.सं. ५३३ थी ५४८ नो छे. (५) युगप्रधान - पट्टावली, विचारश्रेणि व. मां तेमनो वाचनाचार्यपर्याय वज्रस्वामीनी पहेलां अलग गणवामां आवेल छे, जेने ली माथुरी - गणना अने वालभी - गणना वच्चे १३ वर्षनो फेर पडे छे.
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रोहगुप्ते वाद दरमियान द्रव्य, गुण, कर्म, सामान्य, विशेष अने समवाय
१. पूर्वाध्ययनार्थं श्रीवज्रसमीपे गच्छन्नुज्जयिन्यां श्रीभद्रगुप्तसूरिमनशनिनं निरयामयत् कल्पकिरणावली |
वि. भाष्य - गाथा २५०९-१०
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