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अनुसन्धान-५८
त्रैराशिकमतने सम्बन्धित होय. नन्दीसूत्रनी चूर्णि, टीका व मां गोशालकने आजीविकमतना प्रस्थापक जणाव्या छे, पण रोहगुप्तनो त्रैराशिकमतना प्रस्थापक तरीके उल्लेख नथी कर्यो, ते पण आ सन्दर्भे विचारणीय छे.
उपरनी समग्र विचारणा दरमियान ध्यानमा राखवा जेवी बाबत अ पण छे के दृष्टिवादना वर्णनगत त्रैराशिकमतना उल्लेख सिवाय, रोहगुप्तथी पूर्वे, त्रैराशिकमतनी विद्यमानतानो कोई पुरावो नथी जडतो.
विचारणीय वात ঔ पण छे के त्रैराशिकमतनी विचारणा मुजबनां परिकर्म-सूत्रोनो समावेश शा माटे दृष्टिवादमां करवामां आव्यो ? आ परत्वे ओवी कल्पना सूझे छे के दृष्टिवादनी रचनाकाले गोशालकनो आजीविकमत विद्यमान होवाथी, अने से मतने सम्भवतः जैनमत साथे निकटनो सम्बन्ध होवाथी, दृष्टिवादगत परिकर्मसूत्रोनी विचारणा अने रचना से मत प्रमाणे पण थई होय. आम करवुं ओटले जरूरी बन्युं हशे के छिन्नच्छेदनयथी सूत्रोनी अर्थविचारणानी जे जैन परिपाटी हती तेनी सामे अच्छिन्नच्छेदनयथी सूत्रोनी अर्थविचारणा करवानी पद्धति आजीविकमते ऊभी करी होवी जोईए. आजीविकमतनी आ पद्धति सूत्रोना विशद बोधमां महत्त्वपूर्ण भाग न भजवती होय तो सारग्राही जैनाचार्योओ ओने न ज स्वीकारी होत, अने दृष्टिवादमां अने स्थान न ज आप्युं होत. अने अ ज रीते नयचतुष्कथी सूत्रार्थ विचारवानी जैनपरिपाटीनी सामे नयत्रिकथी सूत्रार्थ विचारवानी त्रैराशिकसम्मत पद्धति पण जैनाचार्योओ सापेक्षभावे स्वीकारी होय अने अ पद्धति प्रमाणेनां ' त्रैराशिक ' परिकर्मो अने सूत्रोने दृष्टिवादमां समाव्यां होय.
जो उपरनी कल्पना साची होय तो छिन्नच्छेदनय अने अच्छिन्नच्छेदनय जेम परस्पर विरुद्ध छे तेम नयचतुष्क अने नयत्रिकने पण परस्पर विरुद्ध समजवा पडे. मतलब के जेम नयत्रिकनो अर्थ द्रव्यार्थिक, पर्यायार्थिक अने उभयार्थिक छे, तेम नयचतुष्कनो अर्थ द्रव्यार्थिक जेवा चार विभागमां विभक्त नयो ज लेवा जोइओ, ए वधु सुसंगत जणाय छे. पण ते शुं होई शके ते नयवादना जाणकारो ज बतावी शके'. बाकी टीकाकारो बतावे छे तेम चार मूल नयनी
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जीव, अजीव अने नोजीव ओम त्रण राशिनी सामे जीव, अजीव, नोजीव अने नोअजीव ओम जैनमते चार राशिनी वात प्रस्तुत सन्दर्भे विचारणीय छे.