Book Title: Nihnav Rohgupta Guptacharya ane Trairashik Mat
Author(s): Trailokyamandanvijay
Publisher: ZZ_Anusandhan
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अनुसन्धान-५८
तं जहा दव्वट्ठितो पज्जवट्ठितो उभयद्वितो । अओ भणियं सत्त तेरासिय त्ति । सत्त परिकम्माइं तेरासियपासंडत्था तिविहाए णयचिंताए चिन्तयन्तीत्यर्थः ॥” आ पाठ प्रमाणे बे वातो फलित थाय छे : १. आजीविकमत अ ज 'त्रैराशिकमत' तरीके ओळखातो हतो. जीव अजीव अने जीवाजीव, लोक अलोक अने लोकालोक - ओम सर्वत्र त्रण राशि स्वीकारवाने लीधे गोशालकना अनुयायीओ ज ‘त्रैराशिक' कहेवाता हता. २. त्रैराशिको (अथवा अवचूरिना मते पूर्वसूरिओ त्रैराशिकमतने नयचिन्ता पूरतो स्वीकारीने), साते परिकर्मोने त्रण नयो – द्रव्यार्थिक, पर्यायार्थिक अने उभयार्थिक नयथी विचारता हता. आमां सातमुं परिकर्म जैनसिद्धान्त प्रमाणे नहोतुं. ये तो आजीविक-त्रैराशिकमतने ज सम्मत हतुं, अने ओ रीते ज दृष्टिवादमां स्थान पामतुं हतुं तेमज जैनसमयसम्मत प्रथम छ परिकर्मोने नयचतुष्क - संग्रह, व्यवहार, ऋजुसूत्र अने शब्द नयोथी विचारवानी मूल जैनदर्शननी व्यवस्था हती.
आ पछी दृष्टिवादगत ‘सूत्र'नी व्यवस्था दर्शावता नन्दीसूत्रमां जणावायुं छे के “इच्चेयाइं बावीसं सुत्ताइं छिण्णच्छेयणइयाइं ससमयसुत्तपरिवाडीए सुत्ताई .... अच्छिन्नछेयणइयाइं आजीवियसुत्तपरिवाडीए... तिगणइयाइं तेरासियसुत्तपरिवाडीए... चउक्कणइयाइं ससमयसुत्तपरिवाडीए सुत्ताइं । एवामेव सपुव्वावरेणं अट्ठासीतिं सुत्ताइं भवतीति मक्खायं ॥" आनो अर्थ आम थाय छे उपर जणाव्यां ते बावीस सूत्रोने जो छिन्नच्छेदनयथी' जोवामां आवे तो ओ जैनमतने सम्मत सूत्रो बने छे अने अच्छिन्नच्छेदनयथी जोइओ तो आजीविकमतने सम्मत सूत्रो बने छे. अ ज रीते आ सूत्रोना विषयभूत अर्थने जो चार नयथी विचारीओ तो ओ सूत्रो स्वसमयसम्मत अने त्रण नयथी विचारता त्रैराशिकमतसम्मत बने छे. आम कुल मळीने ८८ सूत्रो दृष्टिवादमां समाविष्ट बने छे.
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उपरोक्त मूल नन्दीसूत्र अने तेनी टीकाओमां आवता ' त्रैराशिक ' अंगेना उल्लेख थोडोक विचार मांगे छे.
★ आजीविकमतने लगता जे निर्देशो अत्यारे उपलब्ध छे अमां अ मत त्रण राशि स्वीकारतो होय ओवो कोई ज निर्देश नथी देखातो. नन्दीनी
१.
पृष्ठ १६१ पर छे.
२. छिन्नच्छेदनय अने अच्छिन्नच्छेदनयना अर्थ माटे जुओ नन्दीनी चूर्णि - टीकाओ ।

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