Book Title: Nihnav Rohgupta Guptacharya ane Trairashik Mat
Author(s): Trailokyamandanvijay
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 15
________________ १६० अनुसन्धान-५८ राशिनी कल्पना योग्य न जणावाथी छोडी देवामां आवी होय. __ आ उपरान्त रोहगुप्तने वैशेषिक दर्शनना मूलपुरुष गणतां पहेला बीजी पण केटलीक समस्याओ विचारणीय छे. जो आ वात साची होय तो वैशेषिक दर्शन फक्त २००० वर्ष अगाउ अस्तित्वमां आव्यु ओम नक्की थाय. तो शुं ओ दर्शनने आटलुं अर्वाचीन गणी शकाय ?? पाइयटीकाना उल्लेख प्रमाणे जो रोहगुप्ते वैशेषिकसूत्रो रच्यां होय तो ते अत्यारे उपलब्ध वैशेषिकसूत्रो छे ते के बीजां? वैशेषिक दर्शनना आदिपुरुष तरीके कणादऋषि गणाय छे. तो आ कणादऋषि अने रोहगुप्त वच्चे शो सम्बन्ध हतो? आ बधा प्रश्नो व्यापक संशोधन मांगे छे. कल्पसूत्रनी स्थविरावलि के जे वि.भाष्य अने पाइयटीका करतां वधु प्राचीन छे, तेमां रोहगुप्तने फक्त त्रैराशिक ज कह्या छे, वैशेषिकदर्शनकार नहीं, ते खास ध्यानपात्र छे. ___वि.भाष्य - गाथा २६१७ थी २६२० सुधी निह्नवोने उद्देशीने करेलु अशनादि भोजन साधुओने कल्पे के नहीं तेनी चर्चा छे. तेमां स्पष्ट जणाव्यु छे के दिगम्बरो मिथ्यादृष्टि होवाथी अने तेमनो मत, तेमनो वेश, तेमना आचारविचार व. सर्वथा भिन्न होवाथी तेमने माटे करेलुं अशनादि साधुने कल्पे. पण बाकीना सात निह्नवोनी शिष्यसन्तति वेश, आचार-विचार व.मां प्रायः समान होवाथी अने तेमनो मत पण दिगम्बरो जेटलो जुदो न होवाथी तेमने उद्देशीने करेलुं अशनादि अमुक ज संजोगोमां साधुने कल्पे, अन्यथा नहीं. हवे रोहगुप्तना सत्तासमय अने वि.भाष्यना रचनाकाल वच्चे ५००-६०० वर्षनुं अन्तर छे. माटे जो रोहगुप्ते स्वतन्त्र दर्शन ज प्रवर्ताव्यु होत तो तेनी शिष्यसन्तति भाष्यना रचनाकाळ सुधीमां क्रमशः वेश, आचार-विचार व.मां तो घणी जुदी पडी ज होत. अटलुं ज नहीं, श्वेताम्बर-दिगम्बरो वच्चेनी मान्यताओमां जेटलुं अन्तर छे अनाथी कंइकगणुं वधारे अन्तर पण जैन-वैशेषिकना सिद्धान्तो वच्चे होवाथी, रोहगुप्तनी शिष्यसन्तति जो वैशेषिक दर्शननी अनुयायी होत तो वि.भाष्यमां जे विधान दिगम्बरोने अंगे छे, ते विधान रोहगुप्तना वंशजोवैशेषिकोने अंगे पण थयुं होत. परन्तु अq तो नथी. उपरथी रोहगुप्तने के तेना वंशजोने, दिगम्बरोनी अपेक्षाओ जैन साधुओनी वधु नजीक गण्या छे. जेना १. पृष्ठ १५९ पर छे.

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