Book Title: Neminath Charitra
Author(s): Jayanandvijay
Publisher: Ramchandra Prakashan Samiti

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Page 341
________________ 332 * जरासन्ध और शिशुपाल वध निर्बल बन गये और उनमें शस्त्र उठाने की भी शक्ति न रह गयी। सेना का यह हाल देखकर कृष्ण चिन्तित हो उठे। उन्हें यह समझ में नहीं आ रहा था, कि सेना का यह वृद्धत्व कैसे दूर किया जाय। अन्त में अरिष्टनेमि को समर्थ जानकर वे उनके पास गये और उनसे सेना का सब हाल कह सुनाया। अरिष्टनेमि को अपने (स्नात्र) जल का महात्म्य मालूम होने पर भी, अपने ही मुख से उसके सम्बन्ध में उन्होंने कुछ कहना उचित न समझा। इसलिए उन्होंने जरा निवारण का एक दूसरा ही उपाय कृष्ण को बतलाते हुए कहा-“हे भ्रात! आप पाताल लोक के नायक धरणेन्द्र नागेन्द्र को उद्देश्य कर अट्ठम तप कीजिए। उनके देवग्रह में सुरासुर, विद्याधर और राजाओं द्वारा पूजित भविष्य में होने वाले तेईसवें तीर्थकर श्री पार्श्वनाथ का बिम्ब विद्यमान है। उसके. स्नात्र जल से नि:संदेह समस्त यादवों का दुःख दूर हो सकता है। आप अट्टम तप कर उनसे उस बिम्ब की याचना कीजिए। आपके पुण्य प्रताप के कारण वे आपकी यह इच्छा अवश्य पूर्ण करेंगे।" . ____ नेमिनाथ प्रभु के यह वचन सुनकर कृष्ण की बहुत कुछ चिन्ता दूर हो गयी। उन्होंने उसी समय अट्ठम तप द्वारा धरणेन्द्र को प्रसन्न कर उनसे पार्श्वनाथ का बिम्ब प्राप्त किया। इसके बाद उसका स्नात्र जल उन्होंने अपनी सेना पर तीन बार छिड़क दिया। जल के छींटे पड़ते ही समस्त सेना जरा मुक्त हो, शत्रुओं से पूर्ववत् युद्ध करने लगी। यह जरा मोचन का अधिकार शंखेश्वर पार्श्वनाथ के तीर्थ कल्प और श्राद्ध विधि आदि ग्रन्थों में विद्यमान है। ___ जरामुक्त यादव सेना के हाथ से पुन: अपनी सेना का संहार होते देखकर जरासन्ध बेतरह कुढ़ उठा। उसने कृष्ण के सामने आकर कहा—“हे गोपाल। इतने दिनों तक तूं अपनी माया से ही जीवित रह सका है। माया से ही तूंने मेरे जामाता कंस को मारा था और माया से ही तूंने कालकुमार का प्राण लिया था। तूं अस्त्र विद्या से रहित है, इसलिए तेरे साथ युद्ध करना मैं अनावश्यक समझता था, परन्तु अब तेरी माया का अन्त लाना आवश्यक है, इसलिए मैं तेरे जीवन के साथ ही अब तेरी माया का भी अन्त लाऊंगा और अपनी पुत्री जीवयशा की प्रतिज्ञा पूर्ण करूंगा।"

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