Book Title: Neminath Charitra
Author(s): Jayanandvijay
Publisher: Ramchandra Prakashan Samiti

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Page 410
________________ श्री नेमिनाथ-चरित * 401 थे, उसमें अनेक वृक्षों के पुष्प गिरने से वह बहुत ही स्वादिष्ट बन गयी। एक बार वैशाख मास में शाम्बकुमार का एक मित्र घूमता घामता वहां जा पहुंचा। तृषा लगने पर जल समझकर उसने उस मदिरा का पान किया, तो उसके अपूर्व स्वाद के कारण उसे बड़ा ही मजा आया। वहां से लौटते समय वह एक मशक भरकर मदिरा अपने साथ लेता आया और वह मदिरा उसने शाम्ब को दी। शाम्ब को भी उसके पीने से अपूर्व आनन्द प्राप्त हुआ। इसलिए उसने उससे पूछा-“हे भद्र! तुम्हें यह मदिरा कहां मिली?" इस प्रश्न के उत्तर में मित्र ने उसे उस कुण्ड का पता बतला दिया, जहां जल की भांति वह अपूर्व मदिरा भरी हुई थी। दूसरे ही दिन शाम्ब अनेक कुमार तथा इष्ट मित्रों को साथ लेकर उस कादम्बरी गुफा में जा पहुँचा। वहां पर मदिरा का अक्षय भण्डार देखकर उसे असीम आनन्द हुआ। शीघ्र ही उसके हुकम से वन वृक्षों के बीच में वन का एक भाग सुन्दर उद्यान के रूप में परिणत कर दिया गया और वहीं बैठकर शाम्ब तथा उसके संगीयों ने जी भरकर उस मदिरा का पान किया। यादवों को मद्यपान का यह अवसर बहत दिनों के बाद मिलता था। दूसरे में वह मदिरा भी पुरानी थी और विविध द्रव्यों के मिश्रण से बहुत सुस्वादु बन गयी थी। यही कारण था कि उसके पीने से उन्हें तृप्ति ही न होती थी। • खूब मदिरा पीकर सब राजकुमार आसपास के स्थान में मदोन्मत्त की भांति क्रीड़ा करने लगे। कादम्बरी गुफा के पास ही एक स्थान में द्वैपायन मुनि को आश्रम था। शाम्ब अपने संगियों के साथ घूमता हुआ वहां जा पहुँचा। उस समय द्वैपायन मुनि ध्यान में मग्न थे। उन्हें देखकर शाम्ब ने अपने मित्रों से कहा-“इसी तापस के हाथों से हमारी द्वारिका नगरी और यदुकुल का नाश होने वाला है। इसलिए आओ, हमलोग इसे इसी समय मार डालें। न रहेगा — बांस, न बजेगी बांसुरी। जब यहीं न रहेगा तब हमारे कुल का नाश कौन करेगा?" शाम्ब की यह बात सब यादवों को पसन्द आ गयी। उन्होंने लात घूसे और ढेला पत्थर मार मार कर द्वैपायन को मृत प्राय कर डाला। इसके बाद वे

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