Book Title: Neminath Charitra
Author(s): Jayanandvijay
Publisher: Ramchandra Prakashan Samiti

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Page 418
________________ श्री नेमिनाथ-चरित * 409 वह बहुत ही किमती है। इसलिए हम लोग उसे चोर समझकर उसका पीछा कर रहे थे, परन्तु लोगों का कहना है, कि वे बलराम हैं। खैर, वह चाहे जो हो, हमने आपको खबर दे दी। अब आप जो उचित समझो वह करें।" ___ यह समाचार सुनकर राजा अच्छदन्त प्रसन्न हो उठा। उसने कहा“कृष्ण और बलराम ने हमारे शत्रु पाण्डवों का पक्ष लिया था, इसलिए उनका वध करने में कोई दोष नहीं। यदि वह बलराम होगा, तो मैं उसे कदापि जीता न छोडूंगा।" यह कहकर उसने उसी समय नगर के सभी द्वार बन्द करवा दिये और बलराम को अपनी सेना द्वारा चारों ओर से घेर लिया। बलराम भी इस विपत्ति को देखकर सावधान हो गये। उन्होंने खाने पीने की सामग्री एक किनारे रख, एक गज स्तम्भ उखाड़ दिया और सिंहनाद कर उसीके द्वारा वे शत्रु सेना का संहार करने लगे। बलराम का सिंहनाद सुनकर कृष्ण भी नगर की ओर दौड़ पड़े। उन्होंने एक लात मारकर द्वार के दोनों कपाट तोड़ डाले। इसके बाद शत्रुसेना में वे उसी तरह घुस पड़े, जिस तरह भेंड़ बकरियों के समूह में व्याघ्र घुस पड़ता है। उन्होंने भी एक स्तम्भ को उठाकर उसके प्रहार से अगणित सैनिकों को यमधाम भेज दिया। दोनों भाइयों का अपूर्व पराक्रम देखकर समस्त सेना भाग खड़ी हुई। राजा अच्छदन्त के भी छक्के छूट गये और वह हथियार फेंक, कृष्ण के चरणों में आ गिरा। ___ अच्छदन्त को क्षमा प्रार्थना करते देखकर कृष्ण ने कहा- "हे अच्छदन्त ! अब भी हम लोगों का भुजबल कहीं नहीं गया। हमारी लक्ष्मी चली गयी है, किन्तु इससे क्या हुआ, वह तो पुरुष के शरीर का मैल है। हे नृपाधम ! तूंने नि:सन्देह बहुत बुरा काम किया है, फिर भी हम तुझे मुक्त करते हैं। जा, हमारे प्रसाद से तूं अपना राज्य पूर्ववत भोग कर।" - इस प्रकार अच्छदन्त की भर्त्सना कर कृष्ण ने उसे छोड़ दिया। इसके बाद उन दोनों भाइयों ने नगर के बाहर एक उद्यान में भोजन कर, वहां से आगे के लिए प्रस्थान किया। इस स्थान से दक्षिण की ओर आगे बढ़ने पर, उन दोनों को कौशाम्ब,

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