Book Title: Neminath Charitra
Author(s): Jayanandvijay
Publisher: Ramchandra Prakashan Samiti

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Page 361
________________ 352 * नेमिनाथ भगवान की बल-परीक्षा आत्मकल्याण तो करना ही है। बाकी, अन्यान्य तीर्थकरों ने जो विवाह किया था,वह तो भोगावलि कर्म के कारण ही किया था, क्योंकि कर्मों की गति भिन्न भिन्न होती है।" ___ इस प्रकार के विचार से प्रभु को हास्य आ गया, और उस हास्य को स्वीकृति मान ली गयी, और कृष्ण ने समुद्रविजयादि को समाचार भेज दिये। नेमिकुमार उस समय मौन रहे। ___इस प्रकार ग्रीष्म ऋतु व्यतीत कर कृष्ण सब लोगों के साथ द्वारिका लौट . आये और नेमिकुमार के लिए एक योग्य कन्या की खोज करने लगे। इतने ही में एक दिन सत्यभामा ने कृष्ण से कहा—“हे प्रियतम! मेरी छोटी बहिन राजीमती अभी तक अविवाहिता ही है। उससे यदि नेमिकुमार का विवाह हो : जाय तो मणिकाञ्चन-योग की उक्ति चरितार्थ हो सकती है।" यह सुनकर कृष्ण प्रसन्न हो उठे। राजीमती उनकी देखी सुनी कन्या थीं, :. इसलिए उन्होंने कहा- “हे सत्यभामा ! इस समय तुमने यह बात कहकर मेरा बड़ा ही उपकार किया है। योग्य कन्या के लिए मैं चारों ओर दृष्टि दौड़ा रहा था, बहुत चिन्तित हो रहा था, परन्तु कोई अच्छी कन्या दिखायी न देती थी, इस समय तुम ने राजीमती की याद दिलाकर मेरी समस्त चिन्ता दूर कर दी ___इसके बाद कृष्ण वहां से उठकर उसी समय उग्रसेन के घर गये। उग्रसेन ने कृष्ण का सत्कार कर, उन्हें सिंहासन पर बैठाकर, उनके आगमन का कारण पूछा। इस पर कृष्ण ने कहा-“हे राजन् ! आप मेरे लघु भ्राता नेमिकुमार को तो जानते ही होंगे। वह अवस्था में मुझ से छोटा है किन्तु गुणों में मुझसे बहुत ही बड़ा है। मैं उसके लिए आपकी राजीमती नामक कन्या की याचना करने आया हूँ।" ___ उग्रसेन ने नम्रता पूर्वक कहा—“हे प्रभो ! यह हमारा अहोभाग्य है, जो आपने यहां आकर हमें कृतार्थ किया है। हमारा यह मकान, यह सम्पदा, हम लोग, हमारी यह कन्या और हमारा सर्वस्व निःसन्देह आप ही का है। अत: जो वस्तु अपनी है, उसके लिए याचना कैसी ? मैं आपकी आज्ञा पालन करने के लिए सहर्ष तैयार हूँ।

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