Book Title: Neminath Charitra
Author(s): Jayanandvijay
Publisher: Ramchandra Prakashan Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 349
________________ 340 * कृष्ण वासुदेव का राज्याभिषेक कोई दूसरा कुरूप नहीं है।" नारदमुनि के यह वचन सुनकर कमलामेला नभसेन को भूलकर सागरचन्द्र पर आसक्त हो गयी। इसके अनुराग का यह हाल जानकर नारदमुनि सागरचन्द्र के पास गये और उससे भी यह सब बातें बतला आये। अपने ऊपर कमलामेला का अनुराग जानकर सागरचन्द्र का अनुराग दूना हो गया। परन्तु उससे मिलन न होने के कारण वह बहुत उदास रहने लगा। उसकी यह अवस्था देखकर उसकी माता तथा राजकुमारों को अत्यन्त दु:ख हुआ इसी दरम्यान एकदिन शाम्बकुमार सागरचन्द्र से मिलने के लिए उसके घर आये। सागरचन्द्र उस समय भी कमलामेला के ध्यान में उदास बैठा हुआ .. था। शाम्बकुमार ने पीछे से आकर दोनों हाथों से उसकी आंखें बन्द कर ली। यह देख, सागर चन्द्र ने अपनी आँखों पर से उसका हाथ हटाते हुए कहा"अहो ! क्या तुम कमलामेला हो?" शाम्ब ने कहा- "हां, मैं कमलामेला-लक्ष्मी से मिलाने वाला हूँ।" सागरचन्द्र ने कहा-"तब तो तुम अवश्य ही कमलामेला से मुझे मिला दोगे। अब मुझे कोई दूसरा उद्योग करने की आवश्यकता नहीं।" इस प्रकार शाम्बकुमार सागर की बातों में फँस गया। परन्तु उसने कोई स्पष्ट वचन न दिया, इसलिए समस्त कुमारों ने शाम्ब को मद्य पिलाकर, उसके नशे में उस पर जोर डालकर इसके लिए उसका वचन ले लिया। नशा दूर होने पर शाम्बकुमार अपने मन में कहने लगा--"अहो! यह दुष्कर कार्य मैंने अपने शिर क्यों ले लिया? परन्तु अब तो मैं वचन बद्ध हो चुका हूँ, इसलिए किसी न किसी तरह यह कार्य पार लगाना ही होगा।" शीघ्र ही नभसेन के विवाह का दिन आ पहुंचा। उस दिन शाम्बकुमार प्रज्ञप्ति विद्या को याद कर अन्य कई कुमारों को साथ लेकर एक उद्यान में गया और वहीं सुरंग द्वारा कमलामेला को उसके घर से बुलाकर सागरचन्द्र के साथ विधिवत् उसका ब्याह करा दिया। वह तो सागरचन्द्र पर पहले ही से अनुरक्त थी, इसलिए इस कार्य में उसने कोई बाधा न दी। उधर ब्याह का समय हुआ, तब घर में उसकी खोज होने लगी, परन्तु वहां उसका पता कहां? इससे उसके पितृ और श्वसुर कुल में हाहाकार मच

Loading...

Page Navigation
1 ... 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434