Book Title: Naychakra Guide
Author(s): Shuddhatmaprabha Tadaiya
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 3
________________ प्रकाशकीय 'नयचक्र गाईड' टोडरमल स्मारक ट्रस्ट, जयपुर से प्रकाशित नवीनतम कृति है । विदुषी लेखिका डॉ. शुद्धात्मप्रभा टड़ैया ने अध्यात्म के नयों को सरल, संक्षेप में प्रस्तुत कर नय जैसे दुरूह विषय को जनसामान्य से परिचित कराने का प्रयत्न किया है। इसमें आत्मानुभूति की दृष्टि से उपयोगी अध्यात्म के नयों की समस्त जानकारी सरल शब्दों में संक्षेप में प्रस्तुत की गई है। नयों जैसा दुरुह विषय स्मृति से विस्मृत न हो जाए इसके लिए उसका बार-बार पठन-पाठन आवश्यक है। पाठक नयों का पुनः - पुनः रिवीजन कर सकें - इस दृष्टिकोण से प्रस्तुत पुस्तक अत्यन्त उपयोगी है। वस्तुतः तो अध्यात्म के नयों का प्रतिदिन पास होना चाहिए, तभी वे याद रह सकते हैं। अतः इसी दृष्टिकोण से प्रस्तुत कृति में निश्चय - व्यवहार का अन्तर व उनके भेद-प्रभेदों का अन्तर चार्ट के माध्यम से बताया गया है। जिनका प्रतिदिन पाठ कर हम नयों की सामान्य जानकारी याद रख सकते हैं। संक्षेप रुचि पाठकों के दृष्टिकोण से बनाई गई प्रस्तुत पुस्तक पढ़कर पाठक जिनागम के मर्म को समझ सकते हैं। नयों की गहरी एवं स्पष्ट समझ, हमें जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सर्वोच्च शिखर पर बैठाने की सामर्थवान विधा है। इस कृति से आपके ज्ञान को वह, प्रभावी गुण मिलें जो आपको सफलतम व्यक्ति बना दे, इसी कामना के साथ यह प्रस्तुत पुस्तक आपके समक्ष है। 3 अध्यात्म के नय नयज्ञान की आवश्यकता नयों का सही स्वरूप समझना निम्न कारणों से आवश्यक है - १. जिनागम को समझने के लिए। २. वस्तु स्वरूप के सच्चे ज्ञान के लिए। ३. आत्मा के सही ( सम्यक) ज्ञान के लिए। ४. आत्मानुभव के लिए । ५. सांसारिक दुःखों से बचने के लिए। ६. मिथ्यात्व के नाश के लिए। ७. सच्चे सुख की प्राप्ति के लिए। नय समझे बिना जिनागम के मर्म को समझ नहीं सकते; क्योंकि समस्त जिनागम नयों की भाषा में निबद्ध है। अतः जिनागम के मर्म को समझने के लिए नयज्ञान की आवश्यकता है। वस्तु तो अनन्तगुणों एवं परस्पर विरुद्ध प्रतीत होने वाले अनन्त धर्मयुगलों का पिण्ड है। अनन्तधर्मात्मक वस्तु को एक साथ जाना तो जा सकता है, पर कहा नहीं जा सकता है। अनन्तगुणात्मक, अनन्तधर्मात्मक वस्तु का कथन अंशों में ही हो सकता है । अंशों में कथन अपेक्षापूर्वक ही होता है। अपेक्षापूर्वक कथन को ही नय कहते हैं। अतः वस्तु के सच्चे ज्ञान के लिए नयज्ञान की आवश्यकता है। सांसारिक दुःखों का नाश और सच्चे सुख की प्राप्ति मिथ्यात्व के नाश के बिना संभव नहीं । मिथ्यात्व का नाश आत्मानुभव के बिना संभव नहीं। आत्मा का अनुभव आत्मा के सही ( सम्यक् ) ज्ञान के बिना संभव नहीं । आत्मा का सही ज्ञान नयों के द्वारा ही होता है, अतः हमें नयज्ञान की आवश्यकता है।

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