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अध्यात्म के नय
चारों ही व्यवहारनय अपनी-अपनी सीमा में अभेद-अखण्ड वस्तु में भेद करते हैं या भिन्न-भिन्न वस्तुओं में अभेद का उपचार करते हैं। प्रत्येक की बात में वजन भी है, पर सभी की बात एक-सी वजनदार नहीं होती अर्थात् प्रत्येक का कथन अपने-अपने प्रयोजनों की सिद्धि की अपेक्षा सत्यार्थ होता है, तो भी सभी का कथन एकसा सत्यार्थ नहीं होता । प्रत्येक नय कथन की सत्यार्थता उसके द्वारा प्रतिपादित विषय की सत्यार्थता के अनुपात में ही होती है।
उपचरित असद्भूतव्यवहारनय की बात में भी सत्यार्थता है; वजन है; असत्यार्थ मान कर उसे ऐसे ही नहीं उड़ाया जा सकता है, क्योंकि इस नय के कथनों का भी आधार होता है। इसके कथन सर्वथा असत्य नहीं है। हाँ इतना अवश्य है कि उपचरित असद्भूतव्यवहारनय की बातें उतनी वजनदार नहीं होती, जितनी अनुपचरितअसद्भूतव्यवहारनय की बात होती है। जैसे - देवदत्त का मकान और देवदत्त का शरीर - इन दो कथनों में वजन का अन्तर स्पष्ट दिखाई देता है।
इन दोनों असद्भूतनयों से भी वजनदार बात होती है। उपचरित सद्भूतव्यवहारनय की, क्योंकि उसमें एक द्रव्य में ही भेद किए जाते हैं। जैसे - मतिज्ञानादि व रागादि को आत्मा का कहना। ___इनकी सत्ता स्वद्रव्य की मर्यादा के भीतर ही है। अतः इनका वजन असद्भूत के दोनों भेदों से भी अधिक है, पर ये अनुपचरित सद्भूत से कम वजनदार हैं, क्योंकि अनुपचरित सद्भूत में पूर्ण निर्विकारी पर्याय या गुण लिये जाते हैं। जैसे - केवलज्ञान आत्मा की शुद्ध पर्याय है या ज्ञान आत्मा का गुण है।
इसप्रकार हम देखते हैं कि व्यवहार की बात में भी वजन है और नय कथनों के उक्त क्रम में उत्तरोत्तर अधिक वजन है। १. परमभावप्रकाशक नयचक्र, पृष्ठ-१२३ २. वही, पृष्ठ-१२४ ३. वही, पृष्ठ-१२४
४. वही, पृष्ठ-१२५
परमशुद्धनिश्चयनय
उक्त चारों व्यवहारों से भी अधिक वजन निश्चयनय में होता है। यही कारण है कि उसके सामने इनका वजन काम नहीं करता और वह इनका निषेध कर देता है। निषेध की बात निश्चयनय की सीमा में आती है। निषेध वचनों का नाम ही निश्चयनय है। ___ चारों व्यवहारनयों में अधिक वजन अशुद्ध निश्चयनय में होता है, क्योंकि यह अशुद्ध पर्यायों में अभेद को विषय बनाता है। लेकिन यह एकदेश शुद्धनिश्चयनय से कम वजनदार है, क्योंकि यह नय एकदेश शुद्ध पर्यायों में अभेद को विषय बनाता है। ____ एकदेश शुद्ध निश्चयनय से अधिक वजन साक्षात् शुद्धनिश्चयनय में होता है, क्योंकि यह पूर्ण शुद्ध पर्यायों में अभेद को विषय बनाता है। लेकिन यह परमशुद्धनिश्चयनय से कम वजनदार है, क्योंकि यह नय पर्यायों से रहित त्रिकाली द्रव्य को विषय बनाता है। यह नय सब भेद विकल्पों का निषेध कर स्वयं निषिद्ध हो जाता है, निरस्त हो जाता है। अतः यही नय सर्वाधिक वजनदार है, उपादेय है, सत्यार्थ है।
प्रस्तुत कृति में नयों का क्रम उक्त नयों के वजन के आधार पर रखा गया है। जिस नय का वजन कम है, वह सर्वप्रथम किया है, उत्तरोत्तर नयों का वजन बढ़ता जाता है।
संक्षेप में हम डॉ. भारिल्ल के शब्दों में कह सकते हैं कि उक्त आठ नय हमें सारी दुनिया से अलग कर शुद्धात्मा तक पहुँचाते हैं, दृष्टि को पर और पर्याय से हटाकर स्वभाव सन्मुख ले जाते हैं। इन नयों द्वारा आत्मा का सही ज्ञान होता है। आत्मा के सही ज्ञान से आत्मानुभूति होती है। आत्मानुभूति से ही मिथ्यात्व का नाश होता है। आत्मानुभूति सच्चे सुख को प्राप्त करने का एकमात्र उपाय है।
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१. परमभावप्रकाशक नयचक्र, पृष्ठ-१२५