Book Title: Navtattva Prakaranam Sumangalatikaya Samalankrutam
Author(s): Dharmvijay
Publisher: Muktikamal Jain Mohanmala

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Page 9
________________ श्रीनवतत्त्व सुमङ्गला टीका. ॥ २ ॥ टा 5z A V A T 55-5! L כון १ प्रवर्तकधीनां संसारी पू० माताजी छबलबाई पण धार्मिक शिक्षिका पद भोगवी दीक्षा आत्मश्रेयः साधी रहेल छे. आ प्रन्थमालाना उत्पादक आराध्यपाद आगमप्र आचार्यमहाराज १००८ श्रीमद्विजयमोहनसूरीश्वरजीना मुख्यशिष्य प्रातः स्मरणीय उपाध्यायजी महाराज १००८ श्रीमतप्रतापविजयजी गणीवरना परमविनेय विद्वद्वर्य प्रवर्त्तकजी महाराजश्री धर्मविजयजी महाराज श्रीनुं आ नवतत्त्वप्रकरण उपर संस्कृत टीका लखवानुं ध्यान चायुं, तेओश्रीना शिष्यरत्न तत्त्वजिज्ञासु मुनिवर्य श्री यशोविजयजीनी आ बाबतमां विशेष प्रेरणा थवाथी टीका करवा सम्बन्धी निश्चय थयो, अने पूज्यपाद परमगुरुदेवनी आज्ञा मळतां ते मंगलकार्यनो प्रारंभ थयो, व्याकरण-साहित्य-जैन सिद्धान्त न्याय विगेरे विषयोना सतत अभ्यासनी प्रवृत्तिमां पण आ टीका कार्य धीमे धीमे चालु रथं. जे आजे सम्पूर्ण थतुं होइ तत्त्वजिज्ञासु समाजना करकमलमां धरतां परम प्रमोद थाय छे. वर्द्धमानपुरी ( वढवाण शहेर ) मां जैन जेवा उच्चकुलमां जन्म, बाल्यावस्थाथी ज धार्मिक संस्कारो, धर्मसंस्कारी मातानो योग, दश वर्षथी पंदर वर्षनी उमर पर्यंत अमदावाद शेठ चिमनलाल नगीनदास बोर्डींगमां व्यावहारिक-धार्मिक शिक्षण, पंदर वर्षनी उमरे पूज्यपाद गुरुमहाराजश्रीना योगथी चारित्र भावना, माता बिगेरे वडील वर्गनी अनुकूलता पूर्वक चारित्र ग्रहण, साधुजीवनमां—-व्याकरण - काव्य-कोष - साहित्य - न्याय - आगमो - प्रकरणो - कर्मग्रन्थ - कर्मप्रकृति प्रमुख शास्त्रोनुं सतत अध्ययन-अध्यापन, अखंड गुरुकुलवास, विनयसम्पन्नता, गुरुशुश्रूषा इत्यादिगुणोथी पालीताणामां प्रवर्त्तकपदार्पण विगेरे टीकाकार मुनिश्रीना जीवन प्रसङ्गो छे. गुरुकृपाथी प्राप्त थएल तत्त्वज्ञानना योगे तेओथी ६००० लोकप्रमाण आ टीका रचवामां सम्पूर्ण फतेहमंद थया जाणी अमो ग्रहण करी. साध्वीजी कुशलधीजी नामे वर्तमानमां L SUM 5<5Z50SAKISA Ini प्रकाशकनुं निवेदन ॥ ॥ २ ॥

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