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गाथाओनो प्रक्षेप करी एकंदर ५९ (अथवा ६०) गाथाओ थएली होवी जोइए एम वृत्ति अवचूर्णि बालावबोध विगेरे उपरथी जोइजाणी शकाय छे । एकंदर नवतत्त्व प्रकरण उपर जुदा जुदा आचार्यो तरफथी एटली भिन्न भिन्न रचनाओ करवामां आवी छे के नवतत्त्वप्रकरणनी मूलगाथाओ केटली ? ते संबंधी कोइ पण चोकस निर्णय उपर आवq मुश्केली भयुं छे, आत्मानन्दसभा-भावनगर तरफथी अमुकवर्षों पहेलां प्रगट थएल 'श्री नवतत्त्व भाष्य-सटीक' ग्रन्थमा नवतत्त्वनी मूलंगाथाओ १४ छे अने ते (त्यां) प्रारम्भमांज जुदी एक साथे आपवामां आवेल छे अने ते १४ गाथाना प्रणेता संबंधी श्री देवगुप्तसूरिमहाराजानुं नाम सर्वत्र प्रसिद्ध छ । आ उपरथी आपणे तो एटलोज सारांश खेंची शकीए छीए के नवतत्त्वनी गाथाओ १४ होय २७ होय ५९-६० होय के १४० होय ते विषय ( चर्चा ) बाजुमा राखीने नवतत्त्व विषयो उपर मळी आवती संख्याबंध भिन्न भिन्न पूर्वाचार्यनी कृतिओ उपलब्ध थती होइ जैनशासनमां जीवाजीवादि नवतत्त्वोनुं प्रतिपादन अने ते प्रतिपादननुं गौरव घणा विशेष प्रमाणमा रहेल छे । पुनरुक्ति तरीके कहीए के 'नवतत्त्वना प्रतिपादन उपर जैनदर्शननुं मंडाण छे' तो ते कथनमा अतिशयोक्तिने लेशपण अवकाश नथी । ५९ गाथाना आ नवतत्त्व प्रकरणमा १ थी ७ गाथामा जीवतत्त्व, ८ थी १४ गाथामां अजीवतत्त्व, १५ थी १७ गाथाओमां
पुन्यतत्त्व, १८ थी २० गाथामां पापतत्त्व, २१ थी २४ गाथामां आश्रवतत्त्व, २५ थी ३३ गाथामां ..गाथाओमा तत्त्वोनी संवरतत्त्व, ३४ थी ३६ गाथामां निर्जरातत्त्व, ३७ थी ४२ गाथामां बन्धतत्त्व, ४३ थी ५० गाथामां व्हेंचण । मोक्षतत्त्व, अने ५१ थी ५९ गाथाओमां प्रकीर्णक अधिकार आपवामां आवेल छ । विषयसम्बन्धी
विशेष समज माटे सविस्तृत विषयानुक्रम स्वतंत्र आपवामां आवेल होवाथी अहिं तद्विषयक विशेष
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