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श्री सुमङ्गलाटीका समलङ्कत आ नवतत्त्व प्रकरण पण हालमा विशेष प्रसिद्ध अने पाठ्यक्रममां अतीव उपयोगी ५९ गाथाओगें रचायेल छ । प्रथम जणावी गया ते प्रमाणे आ प्रकरण उपर हिन्दी तेमज गुर्जर अनुवादो-विवेचनो अनेक विद्वानो तरफथी लखायां छे, अने जुदे जुदे स्थलेथी प्रगट थयां छे, परंतु ५९ गाथाथी संकलित आ नवतत्त्व प्रकरण उपर गमे ते कारणे कोइपण प्राज्ञ पुरुषर्नु संस्कृत भाषामा टीका रचवानुं ध्यान खेचायु होय तेम मारा जाणवामां-जोवामां आवेल नथी, आ नवतत्त्व प्रकरण उपर संस्कृत भाषामां सरल टीका लखवी योग्य छे ए हेतुथी पूज्यपाद शासनप्रभावक गीतार्थप्रवर सच्चारित्रचूडामणि आचार्य महाराज १००८ श्रीमद्विजयमोहनसूरीश्वरजी महाराजश्री तेमज तेओश्रीना परमविनेय अखंडगुरुकुलवासी चरणगुणनिधि-म्हने रत्नत्रयीना प्रदाता पूज्यपाद पाठक प्रवर उपाध्यायजी महाराज १००८ श्रीमत्प्रतापविजयजी गणि
महाराजनी आज्ञानुसार तेमज बालमुनिश्री यशोविजयजीना खास आग्रहथी मारी अल्पबुद्धिनो विचार संस्कृत टीका रच- कर्या विनाज श्रीजिनेश्वर भगवंतना सिद्धान्तने अनुसरी आ नवतत्त्वप्रकरण जेवा गंभीर विषय वानुं प्रयोजन. उपर संस्कृत भाषामा टीका लखवानी मने अभिलाषा प्रगट थइ, अने पूज्य सद्गुरुकृपाए ते अभिलाषा
आजे संपूर्ण थइ । आ नवतत्त्व प्रकरणना मूलकार कोण छे ? ते बाबतमां घणो उहापोह थवा छतां विद्वद्वर्ग तरफथी कोइपण निर्णय आजसुधी थइ शक्यो नथी, तोपण--
" इय नवतत्तविगारो, अप्पमइनाणजाणणाहेउं । संखित्तो उद्धरिओ, लिहिओ सिरिधम्मसरिहिं ॥ १ ॥"
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