Book Title: Navtattva Prakaranam Sumangalatikaya Samalankrutam
Author(s): Dharmvijay
Publisher: Muktikamal Jain Mohanmala

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Page 18
________________ Zyg>卐29- विद्यमान छ । श्री समवायांगसूत्रना उपाङ्गभूत श्री प्रज्ञापनासूत्र ए नवतत्त्वना विषय उपरज रचायेलुं छे जैनशासनमा नवतत्त्व ए टीकाकारमहर्षि श्रीमलयगिरिजीमहाराजाना नीचे जणावाता शब्दोथी जाणी शकाय छे. साहित्य । तेओश्री टीकाना प्रारम्भमांज आ प्रमाणे उल्लेख करे छे के- अस्यां प्रज्ञापनायां षट्त्रिंशत्पदानि, - तत्र प्रज्ञापनाबहुवक्तव्यविशेषचरमपरिणामसंज्ञेषु पञ्चसु पदेषु जीवाजीवानां प्रज्ञापना । प्रयोगपदे क्रियापदे चाश्रवस्य 'कायवाङ्मनःकर्मयोग आश्रव' इति वचनात् । कर्मप्रकृतिपदे बन्धस्य प्ररूपणा । समुद्घातपदे केवलिसमुद्भातप्ररूपणायां संवरनिर्जरामोक्षाणां त्रयाणां, शेषेषु तु स्थानादिषु पदेषु क्वचित्कस्यचिदिति” । श्रमणभगवान् जगबन्धु परमात्मा श्रीमहावीरप्रभुना चरमोपदेशरूप अपृष्टव्याकरण श्रीउत्तराध्ययनसूत्रना मोक्षमार्गदर्शावनार अट्ठावीशमा मोक्षमार्गगति नामना अध्ययनमां पण आ नवतत्त्वोनो ज आ प्रमाणे उद्देश छे, “ जीवा जीवा य बन्धो य, पुण्णं पावासबो तहा । संवरो णिज्जरामोक्खो सन्ते ए तहिया नव ॥ १॥ तहियाणं तु भावाणं सम्भावे उवएसणं । भावेण सद्दहंतस्स सम्मत्तं तं वियाहियं ॥२॥" तथा वाचकशिरोमणि दशपूर्वधर भगवान् श्रीउमास्वातिवाचक निर्मित श्रीतत्त्वार्थाधिगमसूत्र पण 'तत्त्वार्थश्रद्धानं सम्यग्दर्शनम् । जीवाऽजीवाश्रवबन्धसंवरनिर्जरामोक्षास्तत्त्वम् ' इत्यादि सूत्रोथी जीवाजीवादितत्त्वोना वर्णनने उद्देशीनेज रचायानुं सर्व कोइ साक्षरनी जाण बहार नथी ज । ' पुण्यपापयोश्च बन्धेऽन्तर्भावान्न भेदेनोपादानम् ' पुण्यपापतत्त्वनो बन्धतत्त्वमा अन्तर्भाव होवाथी ते उभयतत्त्वोनी पृथक् गणना करी नथी, ए तत्त्वार्थवृत्तिकारमहर्षिना वाक्यथी तत्त्वार्थाधिगमसूत्रमा आवता साततत्त्वो अने प्रस्तुत नवतत्त्वोनी संख्यामा यद्यपि विपर्यय छतां अर्थापेक्षया विपर्यय नथी । ते उपरांत प्रशमरति 0卐६)<sz50)卐-)

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