Book Title: Navtattva Prakaranam Sumangalatikaya Samalankrutam
Author(s): Dharmvijay
Publisher: Muktikamal Jain Mohanmala

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Page 15
________________ श्रीमवतत्त्व सुमङ्गला टीकाया ॥ ५॥ Z45 A V T 臨 U ते उपरांत श्रावकसमूहमां नवतत्व संबन्धी केटलं ज्ञान होवुं जोइए ? ते पण परमात्मा श्रीमहावीरदेवे उपर जणावेला महत्त्वपूर्ण - 5 भूमिका ॥ पदो ख्यालमा आवी शके तेम छे । प्राचीन कालमां 'जैन ' अथवा 'श्रवक' उपनामने धारणकरवावालो प्राचीन कालमां वर्ग पुन्योदयथी प्राप्त थयेल ए उपनामने सफल करवा माटे जीवाजीवादि नवतत्त्वना ज्ञाननी प्राप्ति माटे श्रावकोनी ज्ञानसमृद्धि सतत उद्यमी हतो, ए तत्त्वज्ञानने ज परम उपादेय मानी तेमां आसक्त रहेनार हतो, अने एज तत्त्वज्ञाननी प्राप्तिना योगे आध्यात्मिक उन्नतिमां हंमेशां ते वर्गमां तत्परता जोवामां आक्ती हती । परमकृपालु परमात्माने तेमज सूत्ररचयिता श्रीगणधर भगवंतोने पण ' अभिगयजीवाजीवा' इत्यादि पदोथी श्रावकोने सम्बोधवानो प्रसङ्ग ए कारणथीज प्राप्त थयेलो हतो । ज्यारे वर्त्तमानमां दुःपमकालना प्रभावे किंवा जीवोना बहुलकर्मीपणाने अङ्गे अर्थकामनीज प्राप्तिमां अहर्निश आसक्त ( अमारो बन्धुवर्ग ! ) 'श्रावक' अथवा 'जैन' कुलमां उत्पन्न थवा पूर्वक ए पुन्यलभ्य उपनामने प्राप्त करवा श्रावक किंवा 'जैन' ए पदनो शुं अर्थ छे ? ए पदनी शुं महत्ता छे ? अथवा ए उपनामने धारण करनारनी शुं शुं फरजो छे ? तेनुं विस्मरण थवा साथे कर्त्तव्य भ्रष्ट थइ दुष्प्राप्य 'श्रावक' ना बिरुदने सान्वर्थ करी शकतो नथी एमां शुं कारण छे ? ते विचारवानी खास जरुर छे । पांचदश घरनी श्रावकोनी वस्तीवाला नाना गामथी लइने विशाल वस्तीवाला मोटा शहेरोमां प्रायः प्रत्येकस्थले नानीमोटी धार्मिकपाठशालाओनुं अस्तित्व अवश्य जोवामां - जाणवामां आवे छे, एम छतां जेवुं लक्ष्य, जेवी कालजी अने जेवी तत्परता ! व्यावहारिक केळवणी तरफ अपाय छे ते अपेक्षाए अमुक अंशे पण धार्मिकशिक्षण तरफ विद्यार्थिओ किंवा तेओना वालीओ तरफथी लक्ष्य अपातुं होत, तत्परता उत्पन्न थइ होत ! तो आजनो समाज धार्मिकतत्त्वज्ञानविहोणो निहाळवानो अवसर आव्यो छे ते FNAFN< M G ॥ ५॥

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