Book Title: Navtattva Prakaranam Sumangalatikaya Samalankrutam
Author(s): Dharmvijay
Publisher: Muktikamal Jain Mohanmala

View full book text
Previous | Next

Page 12
________________ अखिललब्धिभृते श्रीमद्गोतमगणभृते नमोनमः ॥ >卐<>yz पूज्यपादप्रातःस्मरणीय जैनाचार्य १००८ श्रीमद्विजयमोहनसूरीश्वरसद्गुरुभ्यो नमः। आराध्यपादपाठकप्रवरोपाध्याय १००८ श्रीमत्प्रतापविजयगणिगुरुवरेभ्यो नमः ।. y33 ज्ञान र परम उपाय याद सहित पुरुषोना वाक्योथी निश्चय z सम卐> 'तत्त्वार्थश्रद्धानं सम्यग्दर्शनम् ' ' तत्त्वज्ञानाभिश्रेयसाधिगमः' इत्यादि सुविहितपुरुषोना वाक्योथी निश्चय छे, के अखिल विश्वमां तत्वज्ञान' ए परम उपादेय छे. यथार्थ तत्त्वज्ञान एहिज सम्यक्त्वस्वरूप होइ परम्पराए आहेत तत्वोनी मोक्षप्राप्तिनुं अवन्ध्यकारण छे. वेदान्त, बौद्ध सांख्य, वैशेषिक विगेरे दर्शनो स्वस्वमन्तव्यानुसार सर्व श्रेष्ठता। भिन्नभिन्नतत्त्वोना प्रतिपादक छे, परंतु शाश्वतप्रभावशाली अमितगुणास्पद त्रिकालाबाधित सनातन श्रीजैनदर्शनसम्बन्धी तत्त्वोनी अपेक्षाए ( तेमज ते ते तत्त्वोना लक्षणादि ) विचारतां पण ते ते दर्शनान्तरीय तत्त्वो पूर्वापरविरोधी तेमज विसंवादी होवार्नु अनुभवाय छे, ज्यारे अनन्तज्ञानी अरिहंतपरमात्माना सनातन जैनदर्शनसम्बन्धी तत्त्वोमां तत्त्वर्नु यथार्थस्वरूप लक्षणगुणधर्मपर्यायोवडे पूर्वापर अविरोधिपणुं तेमज अविसंवादिपणुं निष्पक्षपात वैदिक किंवा इतर दार्शनिक विद्वानोने पण स्वीकारवू पडयुं छे अने पडे छे. आत्मविचारणा-कर्मविचारणा-पुद्गलादिद्रव्यो विगेरे विषयो जैनदर्शनमा जे विशिष्टपद्धतिथी आलेखवामां आव्या छे तेवी पूर्वापर अविरोधिनी पद्धति अन्यदर्शनोमां अंशे पण दृष्टिगोचर थती नथी. > >

Loading...

Page Navigation
1 ... 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 ... 376