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२. आपके ही परिश्रमसे नागोरमें तपागच्छीय उपाश्रयका कार्य पूर्णरूपसे निर्मित हुआ जिसे श्राविकाओंको आराधनाके लिए कायमी धर्मस्थान मिला।
३. नागोरमें जैनसमाजकी ओरसे प्रस्थापित पाठशालाके संकटकालमें समय २ पर आर्थिक सहयोग दिलाया । और पढनेवालोंका उत्साह बढानेके लिए समय २ पर विविध प्रेरणा दी।
४. तद्योग्य सहधर्मि भाइ-बहिनोंकी आर्थिक कठिनाइयां के विषयमें सम्पन्न धनिकोंको उपदेश एवं प्रेरणा-सूचन आदि दे के उनकी विषम स्थितिमें उचित सहारा दिलाया।
मुख्यतया पंजाब, राजस्थान, गुजरात-सौराष्ट्र में विहार करके आपने धर्मका प्रसार किया और जैनसमाजका शक्य उपकार करके अनेकोंको धर्माराधनमें लगाकर धार्मिकक्षेत्रमें नये वसन्तकी शोभा बहलाई ।
साधु-साध्वीयोंको आवश्यक साधन आदिका कोई भी कार्य जान कर आप तुरन्त इसका प्रबंध कराती थी। अपने गुरुवर्गकी सविनय सेवा-भक्तिमें अप्रमत्त रही । आपने अपने साध्वीसमुदायमें छोटे बडे के साथ यथोचित व्यवहार किया जिसके कारण सर्व साध्वीगण आपके जीवनकी भूरि भूरि प्रशंसा करता है तथा अपना भी जीवन इसी आदर्शमय बनानेके लिए प्रयत्नशील रहता है। ____दीक्षाकालके बावनवर्ष पर्यन्त छोटी बड़ी बीमारीमें कभी भी विलायती एवं अभक्ष्य औषधका सेवन नहीं किया, तथा बीमारीके
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