Book Title: Navsmaranadisangraha
Author(s): Vicharshreeji, Damayantishreeji
Publisher: Nagindas Kevalshi Shah Ahmedabad
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१६८
नवस्मरणादिसङ्ग्रहे
धीरेण वि मरियव्वं, काउरिसेण वि अवस्स मरियव्वं । दुन्हं पि हु मरिअव्वे, वरं खु धीरन्तणे मरिडं ||३४|| सीलेण वि मरियव्वं, निस्सीलेण वि अवस्स मरियवं । दुन्हं पि हु मरिअव्वे, वरं खु सीलत्तणे मरिउं ॥ ६५ ॥ नाणस्स दंसणस्स य, सम्मत्तस्स य चरित्राजुतस्स । जो काही उवओगं, संसारा सो विमुविहिसि ॥ ६६ ॥ चिरउसिय बंभयारी, पफोडेऊण सेसयं कम्मं । अणुपुब्बीह विसुद्धो, गच्छइ सिद्धिं धुयकिलेसो ॥६७॥ निक्कसायरस दंतस्स, सूरस्स ववसाइणो ।
संसारपरिभी अस्स, पच्चक्खाणं सुहं भवे ॥६८॥ एयं पञ्चक्खाणं, जो काही मरणदेसकालम्मि । धीरो अमूढसन्नो, सो गच्छइ उत्तमं ठाणं ॥ ६९ ॥ धीरो जरमरणविऊ, धीरो विन्नाणनाणसंपन्नो । लोगस्सुज्जोअगरो, दिसउ खयं सव्वदुक्खाणं ॥ ७० ॥
प्रभुस्तुति
प्रभु माहरा प्रेमथी नमुं, मूर्ति ताहरी जोइने ठरुं । अरर ओ प्रभु पाप में कर्या, शुं थशे हवे माहरी दशा । माटे प्रभुजी तमने वीनवुं, तारजो हवे जिनजीने स्तनुं ॥१॥ दीनानाथजी दुःख कापजो, भविकजीवने सुख आपजो । पार्श्वनाथजी स्वामि माहरा, गुण गाउं हुं नित्य ताहरा ॥२॥
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