Book Title: Navsmaranadisangraha
Author(s): Vicharshreeji, Damayantishreeji
Publisher: Nagindas Kevalshi Shah Ahmedabad

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Page 242
________________ श्रीगौतमस्वामिनो रास । बम रयणायर रयणे विलसे, जिम अंबर तारागण विकस, तिम गोयम गुणकेलिवने ||३९|| यूनिभनिसि जिम ससहर सोहे, सुरतरुमहिमा जिम जग मोहे, पूरव दिसि जिम सहसकरो । पंचानन जिम गिरिवर राजे, नरवइघर जिम मयगल गाजे, तिम जिनशासन मुनिपवरो ॥४०॥ जिम सुरतरुवर सोहे शाखा, जिम उत्तम मुख मधुरी भाषा, जिम वन केतकी महमहे ए । जिम भूमिपति भुयबल चमके, जिम जिनमंदिर घंटा रणके, तिम गोयम लब्धे गहगहे ए ॥ ४१ ॥ चितामणि कर चढियो आज, सुरतरु सारे वंछित काज, कामकुंभ सविवश हुओ ए । कामगवी पूरे मन कामिय, अष्ट महासिद्धि आवे धामि य, सामिय गोयम अणुसरो ए ॥ ४२ ॥ पणवक्खर पहेलो पभणीजे, मायाबीज श्रवण निसुणीजे, श्रीमती शोभा संभवे ए । देवह धुरि अरिहंत नमीजे, विनयप्पह उवज्झाय धुणीजे, इण मंत्रे गोयम नमो ए ॥४३॥ पुर पुर वसतां कांइ करीजे, देश देशांतर कांइ भमीजे, कवण काज आयास करो । ग्रह ऊठी गोयम समरीजे, काज समग्गह ततखण सीझे, नव निधि विलसे तास घरे ॥ ४४ ॥ १४ Jain Education International २० For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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