Book Title: Navsmaranadisangraha
Author(s): Vicharshreeji, Damayantishreeji
Publisher: Nagindas Kevalshi Shah Ahmedabad

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Page 239
________________ २०६ नवस्मरणादिसङ्ग्रहे जिहां जिहां दीजे दिक्ख, तिहां तिहां केवल उपजे ए, आप कन्हे अणहुंत, गोयम दीजे दान इम । गुरु उपर गुरुभत्ति, सामिय गोयम उपनीय, इण छळ केवळ नाण, राग ज राखे रंग भरे ॥२४॥ जो अष्टापद शैल, वंदे चढी चउवीस जिण, आतमलब्धिवसेण चरमसरीरी सोइ मुनि । इअ देसण निसुणेवि, गोयम गणहर संचलियो, तापस पनरसएण, तो मुनि दीठो आवतो ए ॥२५॥ तवसोसिअ निय अंग, अम्ह शक्ति नवि उपजे ए, किम चढशे दृढकाय, गज जिम दीसे गाजतो ए। गिरुए एणे अभिमान, तापस जां मन चिंतवे ए, तां मुनि चढियो वेग, आलंबवि दिनकरकिरण ॥२६॥ कंचण मणि निष्फन दंड, कलस धजवड सहिय, पेखवि परमाणंद, जिणहर भरहेसरविहिय । निय निय काय प्रमाण, चउदिसि संठिय जिणह बिंब, पणमवि मन उल्लास, गोयम गणहर तिहां वसिय ॥२७॥ वयरसामिनो जीव, तिर्यग्जंभक देव तिहां, प्रतिबोधे पुंडरीक-कंडरीक अध्ययन भणी। वळता गोयमसामी, सवि तापस प्रतिबोध करे, लेइ आपणे साथ, चाले जेम यूथाधिपति ॥२८॥ खीर खांड घृत आणी, अमिअवूठ अंगुठ ठवे, गोयम एकण पात्र, करावे पारणुं सवे । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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