Book Title: Navsmaranadisangraha
Author(s): Vicharshreeji, Damayantishreeji
Publisher: Nagindas Kevalshi Shah Ahmedabad
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चतुःशरणप्रकीर्णकम् । चारित्तस्स विसोही, कीरह सामाइएण किल इहयं । सावजेयरजोगाण बजणासेवणतणओ ॥२॥ दसणयारविसोही, चउवीसायथएण किचड य। अचम्भुयगुणकित्तणरूवेणं जिणवरिंदाणं ॥३॥ नाणाईआ उ गुणा, तस्संपन्नपडिवत्तिकरणाओ। वंदणएणं विहिणा, कीरइ सोही उ तेसिं तु ॥४॥ खलिअस्स य तेसि पुणो,
विहिणा जे निदणाइ पडिकमणं । तेण पडिकमणेणं, तेसि पि य कीरए सोही ॥५॥ चरणाइयाझ्याणं, जहकमं वणतिगिच्छरूवेणं । पडिकमणासुद्धाण, सोही तह काउसग्गेणं ॥६॥ गुणधारणरूवेणं, पच्चक्खाणेण तवइआरस्स। विरिआयारस्स पुणो, सव्वेहि वि कीरए सोही ॥७॥ गय-वसह-सीह-अभिसेअ-दाम-ससि-दिणयरं झयं कुंभ। पउमसर-सागर-विमाणभवण-रयणुचय-सिहिं च ॥८॥ अमरिंद-नरिंद-मुणिंदवंदियं वंदिउं महावीरं। कुसलाणुबंधिबंधुरमज्झयणं कित्तइस्सामि ॥९॥ चउसरणगमण-दुक्कडगरहा-सुकडाणुमोयणा चेव। एस गणो अणवरयं, कायव्यो कुसलहेउ त्ति ॥१०॥ अरिहंत सिद्ध साहू, केवलिकहिओ सुहावहो धम्मो। एए चउरो चउगइहरणा सरणं लहइ धन्नो ॥११॥
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