________________
ढाल-उलाला की देशी भव्य नमो गुण ज्ञानने, स्व पर प्रकाशक भावे जी । परजाय धर्म अनंतताः भेदाभेद स्वभावे जी ॥१॥
उलालो जे मुख्य परिणति सकल ज्ञायक, बोधभाव विलच्छना । मति आदि पंच प्रकार निर्मल, सिद्ध साधन लच्छना ॥१॥
स्याद्वाद संगी तत्त्व रंगी, प्रथम भेदाभेदता । सविकल्प ने अविकल्प वस्तु सकल संशय छेदता
पूजा ढाल, श्रीपाल के रासकी देशी भक्ष्याभक्ष्य न जे विण लहिये, पेय अपेय विचार । कृत्य अकृत्य न जे विण लहिये, ज्ञान ते सकल आधार रे । भविका ! सिद्धचक्र पद वंदो ॥१॥ प्रथम ज्ञान ने पछी अहिंसा, श्री सिद्धांते भाख्यु । ज्ञानने वंदो ज्ञान म निंदो, ज्ञानीए शिवसुख चाख्यु रे । भविका, सिद्ध ॥२॥ सकल क्रियानुं मूल ते श्रद्धा, तेहनुं मूल जे कहीये । तेह ज्ञान नित नित वंदीजे, ते विण कहो केम रहीये रे । भविका, सिद्ध. ॥३॥ पंच ज्ञान मांहि जेह सदागम, स्वपरप्रकाशक तेह । दीपक परे त्रिभुवन उपकारी, वली जेम रवि शशी मेह रे । भविका सिद्ध ॥४॥ लोक ऊर्ध्व अधो तिर्यग् ज्योतिष, वैमानिक ने सिद्ध । लोकालोक प्रगट सवि जेहथी, तेह ज्ञान मुज शुद्ध रे ।
भविका, सिद्ध ॥५॥ ढाल ज्ञानावरणी जे कर्म छे, क्षय उपशम तस थाय रे । तो हुए एहिज आतमा, ज्ञान अबोधता जाय रे ॥ वीर-१॥
श्री सम्यग् ज्ञानपद काव्यम् नाणं पहाणं नयचक्क सिद्धं, तत्तत्थबोहीक्कमयं पसिद्धं । धरेह चित्तावसहे फुरतं, माणिक्कदीओ व्व तमो हरंतं ।१। विमलकेवलभासनभास्कर.
ॐ ही श्री परमपुरुषाय परमेश्वराय जन्मजरामृत्यु - निवारणाय श्रीमते सम्यग्ज्ञानाय जलादिकं यजामहे स्वाहा ।
-500