Book Title: Naishkarmya Siddhi
Author(s): Prevallabh Tripathi, Krushnapant Shastri
Publisher: Achyut Granthmala Karyalaya

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Page 16
________________ है । उसीका कुछ सारांश इसमें हम दे रहे हैं। आशा है कि इसके अवलोकनसे पाठकोंका समाधान हो जायगा। अस्तु ____ मण्डनमिश्र जगत्प्रसिद्ध मीमांसक कुमारिलभट्टके शिष्य थे तथा मीमांसा एवं कर्मकाण्डके अलौकिक पण्डित थे। गृहस्थाश्रममें उन्होंने 'विधिविवेक' आदि मीमांसाके कई ग्रन्थ लिखे । वेदान्तके विषयमें प्रसिद्ध 'ब्रह्मसिद्धि' नामक ग्रन्थ भी उन्होंने अपने पूर्वाश्रममें ही लिखा था। बादमें भगवान् शङ्कराचार्य के साथ शास्त्रार्थमें पराजित हो जानेपर, आचार्य शङ्करके सम्पर्कमें आकर उन्होंने अपने विचारोंको परिवर्तित कर दिया । उन्होंने आचार्यके विशेष सम्पर्कमें रहकर अद्वैत वेदान्तके विषयमें अलौकिक अद्भुत पाण्डित्य सम्पादन किया। वेदान्तके विषयमें उनकी ऐसी अलौकिक प्रतिभासे मुग्ध होकर आचार्यने ब्रह्मसूत्रपर अपने शारीरक भाष्यमें वृत्ति लिखने के लिए इनको ही नितान्त उपयुक्त समझकर इनसे उस कार्यके लिए कहा । परन्तु आचार्यकी शिष्यमण्डलीने इस बातका विरोध किया। क्योंकि ये गृहस्थाश्रममें एक कट्टर मीमांसक थे। उस अवस्थामें इनका आग्रह कर्मकाण्डपर बहुत ही अधिक था। इसीसे आचार्यकी शिप्यमंडलीको ऐसी शङ्का हो गई थी कि कर्मकांडके संस्कारोंकी वासनासे कहीं आचार्यके भाष्यको भी ये कर्मपरक ही न सिद्ध कर दें ? इसीकारण शिष्यमण्डलीने उक्त वातका विरोध किया । यद्यपि आचार्य उनको वैसा नहीं समझते थे, वे सुरेश्वरके आशयको भली भाँति जानते थे, तथापि शिष्योंके सन्तोषार्थ आचार्यने फिर उन्हें वेदान्तविषयपर स्वतन्त्र ग्रन्थ तथा वार्तिक लिखनेका आदेश दिया । गुरुकी आज्ञा मानकर सुरेश्वराचार्यजीने शारीरक भाष्यपर वृत्ति नहीं लिखी, किन्तु उपनिषद्भाष्यपर वार्तिक तथा यह ग्रन्थ लिखकर अद्वैत वेदान्तको पुष्ट तथा लोकप्रिय बनाया। तैत्तिरीयभाष्यवार्तिक, बृहदारण्यभाष्यवार्तिक, दक्षिणामूर्तिस्तोत्रवार्तिक, पञ्चीकरणवार्तिक, काशीमरणमोक्षविचार, नैष्कर्म्यसिद्धि प्रभृति ग्रन्थ इनकी विख्यात रचनाएँ हैं। इन विशाल वार्तिकोंकी रचनाके अनन्तर उन्होंने प्रस्तुत ग्रन्थ 'नैष्कर्म्यसिद्धि' को लिखकर इसको आचार्यके सम्मुख उपस्थित किया । वेदान्तके

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