Book Title: Nagri Pracharini Patrika Part 16
Author(s): Shyamsundardas
Publisher: Nagri Pracharini Sabha

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Page 7
________________ द्विगर्न (डुगर ) देश के कवि ३८६ देवदर भूप रखजीतदेव ऊपर ही, है वो सब देख हेतु ठाई भगवान की ॥३०॥ भावार्थ-बादशाहों की किचित् आज्ञा माननेवाले जिसने दीना बेगषान को हराया; मंडी और कहलूर (बिलासपुर) पर्यंत के राजे उसके पास हाजिर होते रहे; जिन्होंने मद, शूर-वीरता को त्यागा; उसके प्रताप से युप्राध ( कांगड़ा) देश अधीन हुमा । ऐसे महाराजा रणजीतदेव पर भगवान् की अति कृपा थी। सवैया बाटि दियो सब देश कटोच को भूपन को वृजराज कुमारहीं। लायो पनौर गुहासन साथ गुलेर सो बागर द्वे बल हारहीं। पालम देश दियो चन्याल को प्रागे हुतो उनको पठियारहीं। और दियो किलेदार को देश नदौन धरे अपने सरदारहों ॥३१॥ भावार्थ-वृजराज कुमार ने कटोचे (कांगड़ा) का देश समीपस्थ राजों को बाँट दिया। चनौर को गुहासन से मिलाया, कुछ गुलेरों को दे दिया, पालम का देश चंब्याल (चंबा राज्य) को दिया। पहले केवल पठियार उनके अधीन था। कुछ भाग किलेदारों को देकर नादौन में अपने सरदार छोड़े। दोहा-दीनों देवीचंद को महल मोरिया देश । ले धन कियो किसान न्यो सकल युभाष नरेश ॥३२॥ भावार्थ-देवीचंद (डाडा के राना) को महसमोरी का इलाका दिया। इस तरह धन लेकर युनाष देश के राजों को किसानो की भौति कर दिया। सोरठा-बड़भागी वृजराई बाटि कांगड़ा देश को। ___करी कलेशर माइ कुटलेहड पर छूट पुनि ॥३३॥ भावार्थ--बड़े भाग्यवाले वृजराजदेव ने कांगड़ा देश को बांटकर, कलेश्वर के मुकाम पर प्राकर, कुटलहड राज्य पर पढ़ाई की। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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