Book Title: Mulshuddhiprakarana Author(s): Pradyumnasuri Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad View full book textPage 9
________________ ग्रन्थसमर्पण जिनके मन-वचन-कायके पवित्र व्यापार सतत श्रेयस्कर हैं, जो अप्रमत्त होकर सदैव शास्त्रसंशोधनमें रत हैं, जिनके प्रसादांशके प्रभाव से मेरेमें संशोधनसंपादनकी गति है, ऐसे पुण्यमार्गके पथिक, प्रज्ञानसे पवित्र, पूज्यपाद आगमप्रभाकर श्री पुण्यविजयजी निर्ग्रन्थके करकमलमें यह ग्रन्थवर उनके शिष्य बालक अमृतके द्वारा समर्पित है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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