Book Title: Mulshuddhiprakarana
Author(s): Pradyumnasuri
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 8
________________ गंथसमप्पणं पुण्णा जोगा मण-वयण-काइया जाण संतयं सेया । अणवरयसत्यसंसोहणे रया जे य अपमत्ता ॥१॥ संसोहण-संपायणविसए जा मम गई हवइ किंची। सा जप्पसायलेसप्पभावओ चेव संपत्ता ॥२॥ पुण्णपहीणं पण्णाणपवित्ताणं च पुज्जपायाणं । आगमपहायराणं ताणं सिरिपुण्णविजयाणं ॥३॥ निग्गंथाणं करकमलकोसमज्झम्मि एस गंथवरो । अप्पिज्जइ अमएणं सीसेणं बालएणं च ॥४॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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