Book Title: Mulachar Uttarardha
Author(s): Vattkeracharya, Gyanmati Mataji
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 2
________________ मूलाचार (दो भागों में) मूलाचार सबसे प्राचीन ग्रन्थ है जिसमें दिगम्बर मुनियों के आचार-विचार-साधना और गुणों का क्रमबद्ध प्रामाणिक विवरण है। ग्रन्थकार हैं आचार्य वट्टकेर जिन्हें अनेक विद्वान् आचार्य कुन्दकुन्द के रूप में मानते हैं। प्राकृत की अनेक हस्तलिखित प्रतियों से मिलान करके परम विदुषी आर्यिकारत्न ज्ञानमती माताजी ने इसका सम्पादन तथा भाषानुवाद किया है, मूल ग्रन्थ का ही नहीं, उस संस्कृत टीका का भी जिसे लगभग ६०० वर्ष पूर्व आचार्य वसुनन्दी ने आचारवृत्ति नाम से लिखा। सिद्धान्ताचार्य पं. कैलाशचन्द्र शास्त्री, विद्वद्वर्य पं. जगन्मोहनलाल शास्त्री और पं. (डॉ.) पन्नालाल साहित्याचार्य जैसे विद्वानों ने पाण्डुलिपि का वाचन किया, संशोधन-सुझाव प्रस्तुत किये, जो माताजी को भी मान्य हुए। ग्रन्थ अधिक निर्दोष और प्रामाणिक हो इसका पूरा प्रयल किया गया। सम्पादक मण्डल के विद्वान् विद्यावारिधि डॉ. ज्योति प्रसाद जैन ने 'प्रधान सम्पादकीय' लिखकर इस कृति के ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य को उजागर किया है। आर्यिकारल ज्ञानमती माताजी का प्रयत्न रहा है कि ग्रन्थ की महत्ता और इसका अर्थ जिज्ञासुओं के हृदय में उतरे और विषय का सम्पूर्ण ज्ञान उन्हें कृतार्थ करे, इस दृष्टि से उन्होंने सुबोध भाषा अपनायी है जो उनके कृतित्व की विशेषता है। भूमिका में उन्होंने मुख्य-मुख्य विषयों का सुगम परिचय दिया है। पूर्वार्ध और उत्तरार्ध के रूप में सम्पूर्ण ग्रन्थ दो भागों में प्रकाशित है। साधुजन, विद्वानों तथा स्वाध्याय-प्रेमियों के लिए अत्यन्त उपयोगी कृति। For a wwww.jainelibrary.org

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