Book Title: Mudra Prayog Ek Anusandhan Sanskriti Ke Aalok Me
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith

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Page 61
________________ मुद्रा योग एक अनुसंधान संस्कृति के आलोक में ...llx को शिरोधार्य कर ज्ञानोपासना के पलों में निरन्तर मेरी सहचरी बनी रही। इसी के साथ अल्प भाषिणी सुश्री मोनिका बैराठी (जयपुर) एवं शान्त स्वभावी सुश्री सीमा छाजेड़ (मालेगाँव) को साधुवाद देती हुई उनके उज्ज्वल भविष्य की तहेदिल से कामना करती हूँ क्योंकि शोध कार्य के दौरान दोनों मुमुक्षु बहिनों ने हर तरह की सेवाएं प्रदान की। अन्तर्विश्वास भगिनी मंडल का, देती दुआएँ सदा मुझको। प्रिय का निर्देशन और सम्यक बुद्धि, मुदित करे अन्तर मन को। स्थित संवेग की श्रुत सेवाएँ, याद रहेगी नित मुझको। इस कार्य में नाम है मेरा, श्रेय जाता सज्जन मण्डल को।। इस शोध प्रबन्ध के प्रणयन काल में जिनका मार्गदर्शन अहम् स्थान रखता है ऐसे जैन विद्या एवं तुलनात्मक धर्मदर्शन के निष्णात विद्वान, प्राच्य विद्यापीठ, शाजापुर के संस्थापक, पितृ वात्सल्य से समन्वित, आदरणीय डॉ. सागरमलजी जैन के प्रति अन्तर्भावों से हार्दिक कृतज्ञता अभिव्यक्त करती हूँ। आप श्री मेरे सही अर्थों में ज्ञान गुरु हैं। यही कारण है कि आपकी निष्काम करुणा मेरे शोध पथ को आद्यंत आलोकित करती रही है। आपकी असीम प्रेरणा, निःस्वार्थ सौजन्य, सफल मार्गदर्शन और सुयोग्य निर्माण की गहरी चेष्टा को देखकर हर कोई भावविह्वल हो उठता है। आपके बारे में अधिक कुछ कह पाना सूर्य को दीपक दिखाने जैसा है। दिवाकर सम ज्ञान प्रकाश से, जागृत करते संघ समाज सागर सम श्रुत रत्नों के दाता, दिया मुझे भी लक्ष्य विराट । मार्गदर्शक बनकर मुझ पथ का, सदा बढ़ाया कार्योल्लास।। इस दीर्घ शोधावधि में संघीय कर्तव्यों का निर्वहन करते हुए अनेक स्थानों पर. अध्ययनार्थ प्रवास हुआ। इन दिनों में हर प्रकार की छोटी-बड़ी सेवाएँ देकर सर्व प्रकारेण चिन्ता मुक्त रखने के लिए शासन समर्पित सुनीलजी मंजुजी बोथरा (रायपुर) के भक्ति भाव की अनुशंसा करती हैं। अपने सद्भावों की ऊर्जा से जिन्होंने मुझे सदा स्फुर्तिमान रखा एवं दूरस्थ रहकर यथोचित सेवाएँ प्रदान की ऐसी स्वाध्याय निष्ठा, श्रीमती प्रीतिजी अजितजी पारख (जगदलपुर) भी साधुवाद के पात्र हैं। सेवा स्मृति की इस कड़ी में परमात्म भक्ति रसिक, सेवाभावी श्रीमती शकुंतलाजी चन्द्रकुमारजी (लाला बाबू) मुणोत (कोलकाता) की अनन्य सेवा

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