Book Title: Mudra Prayog Ek Anusandhan Sanskriti Ke Aalok Me
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith

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Page 96
________________ 30...मुद्रा योग एक अनुसंधान संस्कृति के आलोक में प्राचीन शोधकर्ताओं ने मानव शरीर के सम्बन्ध में जो अनगिनत अनुसन्धान किए हैं उनमें बहुत से नाम गिनाये जा सकते हैं जैसे तुरीय विज्ञान, वायु विज्ञान, ब्रह्म विद्या, शब्द विज्ञान, प्राण विनिमय विद्या, पराध्यान साधना तथा मुद्रा विज्ञान आदि। इनमें से समस्त विद्याएँ अपने आप में सम्पूर्ण रूप से मानव मन को विस्मित कर देने की शक्ति प्रदर्शित कर सकती हैं तब प्रमाणित होता है कि मुद्राएँ स्वयं में आश्यर्चचकित रहस्य है। ___मुद्राओं में वह ताकत, सामर्थ्य एवं ओज है जिससे शरीरस्थ तत्त्वों को सरलता से घटाया-बढ़ाया जा सकता है और सम भी किया जा सकता है। पंच तत्त्वों के संतुलन में ही आनन्द है और उनकी न्यूनाधिकता में उपद्रव और रोग है। मुद्रा प्रयोग के द्वारा तत्त्वों को घटा-बढ़ाकर और सम करके मानव जीवन की बहुत सी झंझटों एवं उपद्रवों को शान्त किया जा सकता है, तत्त्वों की संतुलित स्थिति में शरीर, मनो मस्तिष्क और आत्मा का विकास भी सहज सम्भव है, यही मुद्रायोग का परम रहस्य है। ___मुद्रा एक सूक्ष्म यौगिक क्रिया है इसके द्वारा आन्तरिक और बाह्य प्रकृति में अद्भुत परिवर्तन कर सकते हैं। मुद्राओं का प्रभाव अपने आप होता है। मुद्राओं के द्वारा शरीर के विभिन्न स्नायुगुच्छों (ग्लैंड्स) पर भी आश्चर्यजनक प्रभाव पड़ता है। योग साधना के बल पर यह भी सुस्पष्ट हो जाता है कि किस मुद्रा को किस परिस्थिति में करने पर कौन से स्नायुगुच्छ या ग्लैंड्स का कार्य सुचारू रूप से हो सकेगा? इस तरह के रहस्यमय विषय भी यौगिक क्रियाओं से बोधगम्य हो जाते हैं। आज परमाणु परीक्षण प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष दोनों प्रकार से वातावरण को प्रभावित कर रहा है। जब बाह्य प्रकृति में प्रदूषण फैलता है तब आन्तरिक प्रकृति भी निश्चित ही दूषित हो जाती है। यद्यपि आधुनिक विज्ञान काफी प्रगति पर है किन्तु इस गम्भीर समस्या का हल केवल भारतीय योग विज्ञान के हाथ में है। इस योग विज्ञान में ऐसी विधियाँ उपस्थित हैं जिनके द्वारा प्रत्येक मानव का कायाकल्प ही बदला जा सकता है। वेद के अण्डपिण्ड सिद्धान्त के अनुसार मानव शरीर सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड की एक ईकाई है अतः सम्पूर्ण प्रकृति के गुण मानव में देखे जा सकते हैं। जिस

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