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34...मुद्रा योग एक अनुसंधान संस्कृति के आलोक में हुई प्राण शक्ति को जागृत करने के लिए प्राण मुद्रा (अंगूठा, अनामिका एवं कनिष्ठिका का संयोग) से भोजन करना चाहिए। रक्तचाप को ठीक करने के लिए व्यान मुद्रा (अंगूठा, तर्जनी एवं मध्यमा का संयोग) से भोजन करना चाहिए। इससे सिद्ध होता है कि प्राचीन योगियों ने सर्वसाधारण के लिए अच्छे स्वास्थ्य की कामना से धर्म की विभिन्न विधियों का प्रचलन किया था।
किसी व्यक्ति की आँखे स्थिर हो जाये तो प्राण मुद्रा करनी चाहिए, उससे आँखे पुनः संचालित हो जाती है। प्राण मुद्रा के अभ्यास द्वारा आँखों के विभिन्न रोग दूर किये जा सकते हैं। इसी प्रकार गर्दन की नसें अकड़ जाये तो हाथ की कलाई को विशेष प्रकार से घुमाने पर अकड़ी हुई नसें ठीक हो जाती है। कामजयी मुद्रा के द्वारा उत्पन्न कामप्रवृत्ति को दबाया जा सकता है और इसी मुद्रा के दीर्घ अभ्यास के द्वारा वासना पर नियंत्रण रखा जा सकता है।19
मुद्राओं का प्रभाव स्थूल जगत पर भी साक्षात देखा जाता है जैसे प्रातःकाल आँख खुलते ही हथेलियों को देखकर उन्हें मुख मंडल पर फेरना चाहिए, इससे व्यक्ति भाग्यशाली बनता है ऐसा ऋषि मुनियों ने कहा है।
संत तुलसीदास ने हाथ की अंगुलियों की शक्ति के सम्बन्ध में कहा है कि यदि सीताफल के फल को तर्जनी अंगुली दिखाई जाये तो फूल मृत हो जाता है और बेल फल से रहित हो जाती है।
लाजवन्ती (छुईमुई) का पौधा अत्यन्त कोमल होता है उसका स्पर्श करने से वह तत्काल मुरझा जाता है।
भारतीय संस्कृति में हर किसी से हाथ मिलाने का भी निषेध है क्योंकि हाथ से निःसृत अच्छी-बुरी सूक्ष्म तरंगों का प्रवाह एक-दूसरे व्यक्ति पर शुभअशुभ प्रभाव डालता है। इसमें लाभ की अपेक्षा हानि की सम्भावना अधिक रहती है।
दीक्षा, प्रतिष्ठा, व्रत स्वीकार, पदारोहण आदि मुख्य प्रसंगों पर व्यक्ति विशेष या प्रतिमा विशेष को मुद्रापूर्वक ही अभिमंत्रित किया जाता है जिससे चेतन-अचेतन द्रव्य में अद्भुत शक्तियों का आविर्भाव होता है। ____ इस प्रकार निःसन्देह कह सकते हैं कि हाथ, हथेली एवं अंगुलियों का हमारी जीवन शैली से सीधा सम्बन्ध है तथा हस्त मुद्रायें शरीरस्थ चेतना के शक्ति केन्द्रों (षट् यौगिक चक्रों) में रिमोट कन्ट्रोल के समान कार्य करती हैं।