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स्व: मोहनलाल बाठिया स्मृति ग्रन्थ
महामना पिताश्री
- चित्रलेखा भंसाली
स्व. श्री छोटूलालजी बांठिया चूरू निवासी के कनिष्ठ पुत्र स्व.श्री मोहन लालजी बांठिया हमारे पिताजी थे। उनकी मां एक दृढ़वती श्राविका थीं। पिताश्री का जन्म सन १६०४ के दिसम्बर महीने में हुआ था । ६८ वर्ष की आयु में २३ सितम्वर १६७६ में उनका स्वर्गवास हो गया। अपनी मां की प्रेरणा से पिताजी को धर्म में अरिहन्त में अनन्त विश्वास था। १६ वर्ष की आयुमें ही २५ हरी सब्जी फल रखकर सभी जमीकन्द एवं वनस्पति का त्याग कर दिया था। २५ वर्षकी आयु में वे परिणय सूत्र में आबद्ध हुए थे। अष्टभी, चतुर्दशी और पर्व पर्युषण के दिन रात्रि-भोजन एवं हरी सब्जी का भी त्याग था। इधर स्वास्थ्य खराब रहने के कारण रात्रि में औषधि लेते थे। बचपन में हम भाई-बहिनों को धार्मिक कहानियां सुनाते थे। उसमें से एक कहानी अभी भी स्मृति में है। एक जुलाहे द्वारा टिण्डा का पतला छिलका पूरा अखण्ड उतारा गया था और सभी ने उसकी प्रशंसा की जिससे उसे भी घमण्ड हो गया। उसी के कर्मानुसार कई भवों के बाद वह कर्म के उदय से उस जीव के शरीर की चमड़ी वैसे ही उतारी गई। समय समय पर यह याद आता रहता है। इससे मन व्यथित हो जाता है।
किशोरावस्था में उन्हें कुछ आर्थिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। लेकिन दूसरों को पढ़ाकर अपना खर्च निकालते हुए उन्होंने अपनी पढ़ाई पूरी की फिर यौवन वय में उन्होंने आर्थिक उन्नति की। बंगाल में अकाल के समय प्रतिदिन सुबह अकाल पीड़ितो को भोजन कराते थे। उन्हें कुरान गीता और बाईबिल का भी पूर्ण ज्ञान था। उनका मन हर समय ज्ञान पिपासु रहा और वे रात को भी देर तक पढ़ते थे। वे केवल धार्मिक किताबें ही नहीं पढ़ा करते थे अपितु समाचार पत्र-पत्रिकाएं एवं दुनिया की बहुत सारी विषयों की किताबें पढ़ा करते थे। उन्हें गायन, खेल आदि का भी काफी शौक था। उन्हें बच्चों से भी बहुत प्रेम था।
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