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। स्व: मोहनलाल बाठिया स्मृति ग्रन्थ
परीक्षा पुस्तक पर रोक लगा दी। फलतः तेरापंथ समाज पर ही नहीं, अपितु पूरे जैन समाज, बौद्धिक जगत एवं तटस्थ विचारकों के मानस पर इसकी बहुत ही गलत एवं प्रतिकूल प्रतिक्रिया हुई।
तेरापंथी महासभा के तत्कालीन अध्यक्ष श्री बांठियाजी इस स्थिति में विशेष मर्माहत हुए। अतः लम्बे अर्से से भोग रहे बीमारी की व्यथा को भुलाकर वे अपने दायित्व के प्रति सक्रिय हुए। पूरी तैयारी और मनोबल के साथ इस घोषणा के प्रतिवाद में उन्होंने जब्बलपुर हाई कोर्ट में केश दायर कर दिया। आक्सीजन गैस की नली नाक में लगाए बीमारी, बृद्धत्व एवं मौत से जूझते हुए वे लम्बे समय पर्यन्त रायपुर एवं जब्बलपुर रहे - जब तक कि अदालत से अग्नि परीक्षा पुस्तक को प्रतिबन्ध मुक्त घोषित नहीं करा दिया।
___ आगम कोष योजना द्वारा आगमिक साहित्य को विषयानुक्रम में सजाने में आपने जीवन पर्यन्त जो प्रयास किया और आज उसका जो आधार उजागर हुआ है - उसके पीछे श्री बांठियाजी का महनीय अनुदान रहा है। यद्यपि उनकी वह योजना और उसमे सम्बन्धित कार्य अभी पर्याप्त नहीं बना है। श्री श्रीचन्दजी चोरड़िया का पुरुषार्थ इस दिशा में काफी सक्रिय है। पर कार्य फिलहाल मन्थर गति से चल रहा है। अतः अपेक्षा यह है कि इस कार्य को गति देने के लिए श्री बांठियाजी जैसा कोई व्यक्तित्व सामने आए और तन-मन-धन से एवं अपनी समग्र ऊर्जा को इस कार्य में नियोजित कर इसे विशेष गतिमान बनाए।
स्व. श्री बांठियाजी की स्मृति में उनके विलक्षण व्यक्तित्व एवं कर्तृत्व के प्रति मैं अपनी श्रद्धा समर्पित करता हुआ एक बात स्पष्ट कर देना चाहता हूं कि मेरे कथन को कोई अतिरेक के रूप में न ले। बांठियाजी में कोई कमी थी ही नहीं, मेरे कथन का यह आशय नहीं है क्योंकि एक महान से महान व्यक्ति भी जब तक वीतरागता, सर्वज्ञता एवं सिद्धता के मुकाम पर नहीं पहुंच जाता, कोई न कोई गलती कभी उसमें मिल ही जाती है। अतः बांठियाजी में मुझे जो विशेषता लगी, उसकी अभिव्यक्ति मैंने अपने कथन में की है।
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