Book Title: Mohanlal Banthiya Smruti Granth
Author(s): Kewalchand Nahta, Satyaranjan Banerjee
Publisher: Jain Darshan Prakashan

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Page 304
________________ अवधिज्ञान हो उस क्षेत्र का आकार हरेक के लिए एक जैसा नही होता । जघन्य अवधिज्ञान स्तिबुक (बिन्दु) आकार सा गोल होता है। दर्शन-दिग्दर्शन मध्यम अवधिज्ञान के क्षेत्र के अनेक आकार होते है । वे कैसे कैसे आकार होते हैं, उनके कितने ही उदाहरण देते हुए आवश्यक निर्युक्ति में कहा है : “तप्पागारे पल्लग पडहग झल्लरी मुइंग पुष्प जवे । " तिरिय मजयाण ओही नाणा हिव संटिसी भणिओ ।। त्राप, पल्य, पडह, झरी, मृदंग, पुष्प चंगेरी और यवनालक के आकार में तथा मनुष्य और त्रियंच के विविध आकार में अवधिज्ञान होता है । (१) नारकी का अवधिज्ञान पानी पर तिरने का त्रापा तरापा जैसे आकार जैसा होता है । (२) भुवनपति देवों का अवधिज्ञान पल्य (प्याले ) के आकार का होता है। (३) व्यंतरदेवों का अवधिज्ञान पडह (ढोल) के आकार वाला होता है । (४) ज्योतिषी देवों का अवधिज्ञान झल्लरी (झालर) के आकार जैसा होता है । (५) बारह देवलोक के वैमानिक देवों का अवधिज्ञान मृदंग के आकार का होता है । (६) नौ ग्रैवेयक के देवों का अवधिज्ञान पुष्पचंगेरी (पुष्पक भरी चंगेरी) के आकार जैसा होता है । (७) अनुत्तर देवों का अवधिज्ञान यवनाल के आकार का होता है । यवनालक अर्थात सरकंचुआ अथवा गलकंचुआ । इसका आकार तुरकणीं जो पहरेण परिधान पहनती है वैसा होता है । देव और नारकी के अवधिज्ञान के क्षेत्रका आकार हमेशा ऐसा का ऐसा ही रहता है, वह आकार दूसरे आकार मे परिणमत नही होता । (८) तिर्यंच और मनुष्य का अवधिज्ञान, क्षेत्र की दृष्टि से विविधप्रकार के संस्थान वाला आकार वाला होता है । और जो आकार हो वह दूसरे आकार में भी परिणत हो सकता है। किसी मे वह आकार जीवन पर्यंत अपरिवर्त्तित भी रह सकता है। Jain Education International 2010_03 २६३____ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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