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स्मृति का शतदल
कुशल परामर्शक
- मंगलचन्द लूंकड़ भूतपूर्व मंत्री, श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथी सभा, रायपुर
मैं स्व. बांठियाजी के प्रत्यक्ष सम्पर्क में सन १६७० विक्रम सम्वत २०२७ में आया था। उस वर्ष जैन श्वेताम्बर तेरापंथ के नवमाचार्य श्रीमद तुलसी गणिराज का रायपुर में चातुर्मास था। वह चातुर्मास बहुत ही महत्वपूर्ण ऐतिहासिक सिद्ध हुआ क्योंकि उस चातुर्मास काल में परम पूज्य आचार्यप्रवर का रायपुर प्रवेश के अवसर पर ऐसा शानदार स्वागत हुआ जो कि आज तक किसी भी धर्म सम्प्रदाय के आचार्य या नेता का नहीं हुआ। उस स्वागत में सभी धर्म सम्प्रदायों के नेता शामिल हुए थे। आचार्यप्रवर द्वारा प्रवर्तित अणुव्रत आन्दोलन का जन जन में प्रभाव था अणुव्रत गीत का प्रचलन यहां स्थानीय व आसपास गांवों की स्कूलों में प्रारम्भ हो गया था। पर ईर्ष्या व द्वेषी स्वभाव के कुछ व्यक्तियों से ऐसा शानदार स्वागत सहन नहीं होने के कारण उन्होंने कुछ उपाय सोचा और 'अग्नि परीक्षा' नामक पुस्तक जो कि आचार्यश्री तुलसी द्वारा रचित थी, उसको लेकर विरोध का रास्ता अपनाने हेतु द्वेषी व्यक्तियों को अप्रत्यक्ष तौर से साम्प्रदायिक उन्माद फैलाकर घोर विरोध करने के लिए उकसाया।
रायपुर चातुर्मास के समय सना६७० में आचार्य श्री तुलसी पर फौजदारी मामला रायपुर के ४-५ नागरिकों द्वारा दायर किया गया था। हमारे बचाव पक्ष के वकील मोकासदार पैरवी करने के लिए खड़े हुए थे। इसी वजह से उनके मकान पर पत्थर बरसाये गये, जिससे खिड़कियों के कांच बहुत टूट गये थे और सम्पत्ति का काफी नुकसान हुआ था। इस केस की पैरवी के लिए अन्य कोई वकील तैयार नहीं हुआ। ऐसी स्थिति में श्री मोकासदार वकील ने मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय, जबलपुर में केस को रायपुर से अन्यत्र स्थानपर ट्रांसफर हेतु आवेदन किया। इसी एफीडेविट के आधार पर आचार्य श्री तुलसी पर मुकदमा जो रायपुर में दायर किया गया था, उसे उच्च न्यायालय, जबलपुर ने वह मामला मण्डला टांसफर करने का आदेश पारित किया था।
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