Book Title: Meri Jivan Gatha
Author(s): Ganeshprasad Varni
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan

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Page 6
________________ प्रकाशकीय पूज्यवर १०५ क्षुल्लक श्री गणेशप्रसाद जी द्वारा लिखित प्रस्तुत ग्रन्थ मेरी जीवनगाथा (प्रथम एवं द्वितीय भाग अलग-अलग मुद्रित), संस्थान द्वारा प्रकाशित ग्रन्थों में प्राचीनतम तथा अद्वितीय हैं। हिन्दी में लिखित आत्म-कथाओं में यह पहली पंक्ति में आती है। पं. बनारसीदास कृत "अर्धकथानक' के पश्चात् संभवतः यह दूसरी या तीसरी हिन्दी की आत्मकथा है। मुझे यह आत्मकथायें बचपन से ही पढ़ने का सौभाग्य प्राप्त होता रहा है। अभी इसका अंतिम प्रूफ पढते हुये, इसे पुनः पढ़ने का आनन्द प्राप्त हुआ। ऐसा लगा कि पहली बार ही पढ़ रहा हूँ। प्रस्तुत सस्करण में अनेक अशुद्धियाँ ठीक की गईं हैं तथा पुराने चित्र भी पुनः सम्मिलित किये गये हैं। । यद्यपि यह ग्रंथ जैन समाज में अधिक प्रचलित रहे हैं, परन्तु यह सभी के द्वारा पठनीय एवं मननीय हैं। आशा है कि सभी इसका रसास्वादन करेंगे। संस्थान ग्रन्थमाला सम्पादकद्वय प्रो.(डा.) राजाराम जैन (नोएडा) एवं पं. उदयचन्द्र जैन (वाराणसी), जो देश के लब्ध प्रतिष्ठ विद्वान् हैं, का निरन्तर मार्गदर्शन हमें प्राप्त होता रहता है। संस्थान के उपाध्यक्ष डा. फूलचन्द्र प्रेमी, कार्यकारी निदेशक डा. कमलेश कुमार जैन, एवं संयुक्त मंत्री श्री खुशाल चन्द सिंघई सदा संस्थान के कार्यों में सहयोग देते रहते हैं। मैं इन सभी का आभारी हूँ। आरंभिक प्रूफ रीडिंग के लिये डा. कपिल देव गिरि को भी धन्यवाद देता हूँ। प्रथम भाग का कुशल कम्प्यूटरीकरण करने के लिये मेरे सहायक श्री पंकज गौड़ विशेष साधुवाद के पात्र हैं। श्री अजय मेहता हमारे प्रकाशन कार्यों में अद्भुत सहयोग देते रहते हैं, अतः उनको भी हम धन्यवाद देते हैं। दशलक्षण पर्व, २००६ रूड़की डा. अशोक कुमार जैन प्रोफेसर (भौतिकी), आई.आई.टी. रूड़की मंत्री, श्री गणेश वर्णी दिगम्बर जैन संस्थान Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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