Book Title: Manipati Rajarshi Charitam
Author(s): Jambukavi, Bhagwandas Pt
Publisher: Hemchandra Granthmala

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Page 5
________________ %25ॐॐॐॐॐ निधानादर्शनान्मूढो दृष्टान्तरष्टभिर्यथा। गजाधरन्वशात् साधु नैगमः सोऽपितं यथा // 22 // तावद्भिरेव हाराद्यैः प्रतिबोध्य विधानतः / स्वकार्य साधयामास तपस्वी संगवर्जितः // 23 // तथाहि--हस्ती हारः सिंहो मेतायर्षिस्तथा नरेन्द्रस्त्री / वृषभो गृहकोकिलको विद्वत्सचिवास्तथा बटुकः॥२४॥ श्रीमाँश्च नागदत्तो वर्द्धकिरथ चारभटचथो गोपः। सिंही शीतातहरिः काष्ठमुनिश्चापि षोडशकः // 25 // तथतत्सर्वमस्माभिर्वर्ण्यमानं निशम्यताम् / येन स्यान्मत्प्रयासोऽयं सार्थको युष्मदाश्रयात् // 26 // अस्त्यनेकजनाकीर्णाऽऽकीर्णरत्नोपशोभिता / शोभिताशेषदिग्भागा दिग्भागागतनेगमा // 27 // नंगमानीतसद्भाण्डा सद्भाण्डापूरितापणा / आपणाकुलसन्मार्गा सन्माणः प्रविराजिता // 28 // प्राकारेणातितुझेन सुवृत्तेन समन्ततः / लब्धसाधुप्रतिष्ठेन सज्जनेनेव वेष्टिता // 29 // अलध्या परलोकेनालन्धमध्या च खातिका / भ्राजते पार्श्वतो यस्याः सतीवातीवसुन्दरा॥३०॥ यस्यां च खलस्तिलविकार एव, नालिकः सरसिरुहखंड एव, परलोकतप्तिपरः साधुवर्ग एव, कुटिलगति - जङ्गापूग एव, प्रवासी हंससमूह एव, यत्र च नन्दनवनायन्ते भ्रमभ्रमरझंकारहारीणि काननानि, हिमगिरिशिखरायन्ते अतितुङ्गतरदेवकुलवृन्दानि, सलिलनिधीयन्ते विपुलतरसरांसि, मन्मथकलनायन्ते कनककलशसदृशपयोधरभराक्रान्ता वनिताः, मकरध्वजायन्ते सकलविलासिनीजनमनोनयनानन्दकारिपुरुषनिकराः, किंबहुना पुरन्दरपुरा साई स्पर्द्धते या समृद्धितः / श्रीमणिपतिकानाम्ना नगरीदृक्षलक्षणा // 31 // ॐॐॐॐॐॐ

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