Book Title: Mahavir Darshan
Author(s): Pratap J Tolia
Publisher: Vardhaman Bharati International Foundation

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Page 5
________________ (प्रवक्ता F) इस महामंत्र की आराधना, ध्यान-साधना एवं तदनुसार आचरणा - सम्यक् दर्शन-ज्ञान-चारित्र की रत्नत्रयी उपासना - एक महान् आत्मा ने की थी : एक नहीं, दो नहीं, सत्ताइस सत्ताइस जागृत जन्मान्तरों में ...। (M) ... और इतनी सुदीर्घ साधना के पश्चात्, आज से ठीक 2600 वर्ष पहले, ईस्वी पूर्व (598) पांच सौ अठयानबे में (F)... जाबूद्वीप के भरतक्षेत्र की कर्मभूमि,... बिहार की संपन्न वैशाली नगरी,... उसी का एक उपनगर क्षत्रियकुंड ग्राम और उसी में स्थित एक राजप्रासाद - तेईसवे जैन तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथ के धर्मावलंबी एवं लिच्छवी वंशी राजा सिध्धार्थ का यह राजमहल...। यहाँ पर राजमाता त्रिशलादेवी की पवित्र कुक्षि में उस भव्यात्मा का देवलोक से अवतरण हुआ है - महामंगलकारी चौदह सर्वोत्तम सांकेतिक स्वप्नों के पूर्वदर्शन के साथ । (दिव्य वाद्य संगीत) (Celestial Instrumental Music : Soormandal, Santoor) 'मति, श्रुत एवं अवधि' इन तीनों ज्ञान से युक्त यह भव्य करुणाशील आत्मा गर्भावस्था में भी अपनी माता की सुखचिन्ता एवं सुख-कामना का संकल्प करती हुई नौ माह और साडेसात दिन पूरे करती है। .... वह दिन है - चैत की चांदनी की तेरहर्वी तिथिःचैत्र शुक्ला त्रयोदशी...।शुक्लपक्ष की इस चांदनी में शुक्लध्यान-आत्मध्यान-आत्मस्वरूप में खो जाने यह महान चेतना शरीर धारण करती है - (Soormandal + Sitar : Musical Interlude) (गीत) (सूरमंडल+सितार : वाद्य मध्यान्तर) "पच्चीस सौ बरसों पहले एक तेजराशि का जन्म हुआ। (नीनीनीनी सानी रे रे -/पए मपपरे सारेसानी-) जुजुग का अंधकार मिटाता, भारत भाग्य रवि चमका॥

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