Book Title: Mahavir Darshan
Author(s): Pratap J Tolia
Publisher: Vardhaman Bharati International Foundation

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Page 18
________________ (M) “समयं गोयम् । मा पमायए ... । पलभर का भी प्रमाद मत कर हे गौतम !" (प्रतिध्वनि) (F) - लौटे वे प्रमादपूर्ण आर्त्तध्यान से ... और तुरन्त ही हुआ उन्हें केवलज्ञान । (आनंदमय आनंदसंगीत ध्वनि) (वृद गीतधून) “वीर प्रभु का हुआ निर्वाण, गौतमस्वामी केवलज्ञान।" “भाते आतम भावना जीव पाये केवलज्ञान रे (२)/" “ आतम भावना भावतां जीव लहे केवलज्ञान रे (२)।" ००००० (वाद्य संगीत) (नव अरुणोदय संकेत संगीत) (M)- आज पच्चीस सौ वर्षों के पश्चात् (विहगवृंद ध्वनि, प्रभात संकेत) - आती है उस चिर महान आत्मा की - भगवान् महावीर की यह आवाज - (धोष) “मित्ती मे सव्व भूएसु, वैरं मज्झं न केणई।" (सब से मेरी मैत्री, वैर नहीं किसी से) "शिवमस्तु सर्वजगतः परहितनिरता भवन्तु भूतगणाः। दोपाः प्रयान्तु नाशम्, सर्वत्र सुखी भवन्तु लोका॥" (सर्व विश्वजीव सर्वत्र सर्वथा सुखी हों, अन्यों के उपकारक हों, सर्वजीवों के दोष नष्ट हों।) (M) आज गूंजती है - तीर्थंकर भगवंत महावीर के मंगलदर्शन की वह “वर्धमान भारती", वह जग-कल्याणी वाणी - (F) जम्बू-नन्दीश्वर के द्वीपों से, भरत-महाविदेह के क्षेत्रों से और मेरु-अष्टापद - हिमालय की चोटियों से- (M:घोष)"जे एगं जाणइ, से सव्वं जाणइ । (वाद्य) जो एक को, आत्मा को जान लेता है, वह सब को, सारे जगत को जान लेता है। _ -वीरस्तुति - वीरः सर्व सुरासुरेन्द्र महितो, वीरं बुधा संश्रिताः। वीरेणाभिहतः स्वकर्मनिचयो, वीराय नित्यं नमः॥ वीरात् तीर्थमिदं प्रवृत्त मतुलं, वीरस्य घोरं तपो। वीरे श्री, धृति, कीर्ति, कान्ति निचयः। श्री वीर भद्रं दिश। ॥ॐ शांति : शांति : शांतिः॥

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