Book Title: Mahavir Darshan
Author(s): Pratap J Tolia
Publisher: Vardhaman Bharati International Foundation

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Page 11
________________ गीत (M) (M) (M) (शिवरंजनी + अन्य) "धारे वनों में पैदल घूमे, (F) पैरों में लिए लाली (F) मान मिले, अपमान मिले या देवे भले कोई गाली। (F) पंथ था उस का जंगल-झाड़ी कंकड़-कंटक वाला, कभी कभी या साथ में रहता मंखलीपुत्र गोशाला॥" (वन में निर्भययात्रा) (स्वरपरिवर्तन) "आफत और उपसर्ग की सेना, पद पद उसे पुचकारती थी, आँधी-तूफों और मेघ-गर्बन से कुदरत भीललकारती थी॥ "घोर भयानक संकट के बीच आतम-साधना चलती थी। जहर हलाहल को पी जाकर, अंखियाँ अमृत झरती थीं। "प्रेम की पावन धारा निरंतर, पापी के पाप प्रक्षालती थी। मैत्री-करुणा की भावना उसकी, डूबते बेड़े उबारती थी॥" (करुणा-वेदना- करुण मुरली स्वर : दृढ अडिगता के वज्र ध्वनि स्वर) "चंडकोशी जैसे भोषण नाग को बुझाने वीर विहार करे। जहर भरे कई दंश दिये पर वे तो उस से प्यार करें। दृढभूमि के पेढाल उद्यान में संगमक देव के छह माह तक बीस प्रकार के घोर भयंकर मरणांत उपसर्ग"होश भुला एक ग्वाला भले ही, कानों में कीले मार चले। आतम-भाव को जानने वाला, देह की ना परवाह करे ।। (शेरगर्जना) देव और दानव, पशु और मानव, प्राणी उसे कई डंस रहे । हँसते मुख से महावीर फिर भी, मंगल सब का चाह रहे।" ऐसे घोर उपसर्गों और दुःखों से भरी लम्बी साधनायात्रा बाह्यांतर निर्ग्रन्थ पुरुषार्थी महावीर ने आत्मभावना में लीन होकर छोटी कर दी और आनंद से भर दी.... (वायब्रो-ध्वनि)

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