Book Title: Mahavir Darshan
Author(s): Pratap J Tolia
Publisher: Vardhaman Bharati International Foundation

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Page 14
________________ में चले, दिव्य-ध्वनि एवं देवदुन्दुभि के नाद गूंज उठे.... (M) - और प्रभु ने अपनी देशना में प्रकाशित किया - (प्रतिध्वनि) “जीव क्या ? अजीव क्या? आत्मा क्या, कर्म और कर्मफल क्या? लोक क्या- अलोक क्या? पुण्य-पाप क्या?सत्य असत्य वया? आश्रव संवर क्या? बंध निर्जरा-मोक्ष क्या ?" “एगो मे सासओ अप्पा, नाण दंसण संबुओ।" "सेसा मे बाहिरा भावा, सब्वे संजोग लक्खणा ॥ ज्ञानदर्शन युक्त शाश्वत आत्मा ही एक मेरी है, बाकी तो सारे बाह्यभाव हैं, जो परस्थिति-जनित हैं।" फिर तो लगातार ऐसे अनेक विषयों की अनेक देशनाओं के द्वारा, बहुतों को तारनेवाला उनका धर्म-तीर्थ-प्रवर्तन भारत की धरती पर अखंड चलता रहता है। आचार में करुणा, अहिंसा, संयम, तप, दर्शन और चिंतन में स्याद्वाद-अनेकांतवाद एवं धर्म में सर्वविरति - देशविरति या पंच महाव्रत - बारह अणुव्रत से युक्त, निश्चय-व्यवहार के संतुलनवाले, सम्यग् दर्शन ज्ञान चारित्र के इस तत्कालीन और सर्वकालीन प्रवर्तनक्रम में चतुर्विध संघ बना। उस समय के संघ में साधुओं में प्रधानथेगणधर गौतम स्वामी, साध्वियों में आर्या चन्दनबाला, श्रावकों में आनंदादिएवं श्राविकाओं में रेवती, सुलसा इत्यादि विदुषियाँ। उस युग की, देश और काल की, धर्म और समाज की समस्याएँ थीं - ब्राह्मण-शूद्र, जाति-पाँति - (M) ऊंच-नीच और पीडित नारी - दम्भ, पाखंड, हिंसा, पशुबलि - (M) अंधाग्रह और झूठ की जालीथोथे क्रियाकांड और जड़भक्ति - संक्षेप में, बाहरी पुद्गल पदार्थों में आत्मबुध्धि ! भगवान महावीर के पास इन सभी समस्याओं का समाधान था, सभी रोगों का उपचार था, सभी के प्रश्नों का जवाब था

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