Book Title: Mahavir Darshan
Author(s): Pratap J Tolia
Publisher: Vardhaman Bharati International Foundation

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Page 12
________________ (F) जिस आत्मा को पहचानने और समग्रता में पाने के लिये वे चले थे, वह अब करीब करीब उनकी पहुँच के भीतर ही थी (ध्वनिघोष) “सच्चिदानंदी शुध्ध स्वरूपी, अविनाशी मैं आत्मा हूँ ।" "सच्चिदानंदी शुध्ध स्वरूपी, अविनाशी मैं आत्मा हूँ ।" (M) (F) - (M) (F) (M) - (F) ཀྱེ (F) (गीत) (M) (F) यह वही भाव था, वही स्नेहकरुणा के अनमोल न का सागर था, जिसकी अतल गहराईयों से वे कष्ट सहन के, क्षमा के एवं निरपेक्ष ती ले आये थे - सागरध्वनि) अन्यथा ऐसे घोर कष्ट, परिषह और उपसर्ग से सह सकते थे ? और फिर ध्यान - लीन महातपस्वी महावीर विहार करते करते कौशाली नगरी में पधारे, जहाँ प्रतीक्षा कर रही थी - चन्दनबाला ... बड़ा अद्भुत है इतिहास इस राजकुमारी का, वैशाली नगरी में बेची गई एक नारी का ! ग्रंथ गवाह है- पांच माह पच्चीस दिन के उपवासी भविष्यदर्शी महावीर का यह अभिग्रह था कि ( प्रतिध्वनि) “जबतक एक उच्च कुल की फिर भी कर्मवश दासी बनी हुई, मुंडित केश, बंदी शरीर और रोती हुई आंखोवाली अबला हाथों में उड़द लिये भिक्षा देने द्वार पर प्रतीक्षा करती न मिले, तब तक वे किसीसे भिक्षा नहीं लेंगे ।" वही नारी थी - (राग - मिया मल्हार, मिश्र, बसन्त, त्रिताल) “चन्दनबाला ! ...... तेरा अद्भुत है इतिहास ।" इस इतिहास के पृष्ठ पृष्ठ पर (F) प्रगटे दिव्य प्रकाश ... ॥ चन्दनबाला ...... । एक दिन थी तू राजकुमारी, राजमहल में बसनेवाली दासी होकर बिक गई पर, बनती ना उदास ॥ तेरा... चन्दनबाला ...... । दुःखों का कोई पार न आया, फिर भी अड़िग रही तुज काया । कर्म (काल) कसौटी करे भयंकर, फिर भी भई न निराश ॥ तेरा... चन्दनबाला ...... ।

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