Book Title: Mahaveer Vani
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Bharat Jain Mahamandal

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Page 190
________________ मोनमार्ग मूत्र जो श्रमण भौतिस मुल को मारनता है, भविष्यकालिक सुख-साधनो के लिए व्याकुल रहता है, जब देखो तब सोता रहता है, तुन्दरता के फेर में रहकर हाथ, पैर, मुंह श्रादि घोने में लगा रहता है. उने मद्गति मिलनो बडी दुर्लभ है। (३२) जो उत्कृष्ट तपश्चरण का गुण रखता है, प्रकृति से सरल है, समा और संयम मे स है. शाति के साथ तुधा श्रादि परोपही को जीतनेवाला है. उसे मदगति मिलनी बडी मुलभ है।

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