Book Title: Mahaveer Vani
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Bharat Jain Mahamandal

View full book text
Previous | Next

Page 193
________________ १६६ महावीर-वाणी (३०४) जे माहणे खत्तियजायए वा, तहुगापुत्ते तह लेच्छई वा । जे पव्वइए परदत्तभोई, गोत्ते ण जे थन्मति माणवद्ध । [सूत्रकृ० १, अ० १३, १०] (३.५) जे आवि अप्प वसुमं ति मत्ता, संखायवायं अपरिक्ख कुज्जा । तवेण वाऽहं सहिउ ति मत्ता, अरणं जणं पम्सति विवभूयं ॥ [सूत्रकृ० १,१० १३,८] (३.६) न सस्स जाई व कुलं व ताणं, णण्णत्थ विज्जाचरणं सुचिएणं । णिक्खम्म से सेवइऽगारिकम्म, ण से पारए होइ विमोयणाए ।

Loading...

Page Navigation
1 ... 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220